Book Title: Shrutsagar 2020 01 Volume 06 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर जनवरी-२०२० गुरुवाणी ____ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी जैनदृष्टिए आत्मानुं अनन्त वर्तुल सापेक्ष नयदृष्टिथी रागादिनो उपशमादिभाव करीने जेओ आत्मज्ञानमां उंडा अवतरीने सर्वधर्मना वादोने स्याद्वादपणे आत्मामा परिणमावे छे, तेओ ज्ञानादि वर्तुलना पृथुत्व विकासथी सार्वभौम धर्मराज्य प्रवर्तक मुख्य नेताओ थवाना अधिकारी बने छ। जेओ सम्यग् ज्ञानादिए विशाल विचाराचार वर्तुलवाळा होइ अन्य धर्मोने अपेक्षाए स्वमां समाववा समर्थ बने छे, अथवा अन्य धर्मीय मनुष्यो पर उपशमादिदृष्टिए साम्यभाव धारीने स्वविचाराचार- महद् वर्तुल अवबोधाववा समर्थ बने छ । तेओ सर्व धर्म सर्वाधिपत्यने प्राप्त करी शके छे। आवी अधिकारता वस्तुतः स्याद्वाद दृष्टिधारक तत्त्वचिन्तक महाज्ञानीओने घटी शके छे । जे वर्तुलमां अन्य सर्व वर्तुलो समाइ जाय छे, ते वर्तुल वस्तुतः महान् गणाय छे । तद्वत् अत्र पण जे धर्मनी दृष्टिमां सापेक्ष नययोगे सर्व धर्म सत्य विचाराचारोनो अन्तर्भाव थाय छे। ते धर्म, सर्व धर्ममां सार्वाधिपत्य भावने धारी शके छे। लघु वर्तुलमां महावर्तुलनो समावेश थतो नथी, तद्वत् जे दर्शन धर्म वा मत पोताना लघु संकुचित विचारो अने आचारोवाळो छ । तेमां अन्य विशाल विचाराचारोवाळा महा धर्मोरूप महा वर्तुलोनो समावेश थतो नथी। वीतराग कथित स्याद्वाद दृष्टिए जैन धर्मनुं वर्तुल एवडुं बधुं महान् छे के तेमां अनेक नय सापेक्ष दृष्टिए सत्य विचारो अने आचारो भिन्न-भिन्न अधिकारीओ माटे असंख्य प्रकारे भिन्न छे तेमां विचारोनी अपेक्षाए सर्व धर्मना तत्त्व विचारोनो सापेक्ष दृष्टिमा समावेश थाय छे, अने चारित्यरूप बाह्याभ्यन्तर आचारोनी अपेक्षाए अविरति-देशविरति सर्वविरति आदि आचारोनो चारित्र धर्ममां समावेश थाय छे। चारित्र धर्मना आचारोना असंख्य भेदो छे, अने सापेक्षपणे एकेक आचारने पाळतां धर्मनी आराधना होइ शके छे आवी स्याद्वादनयोनी अपेक्षावाळा जैनदर्शनरूप महासागरमां सर्व धर्मना विचारो अने आचारोनो समावेश थवाथी, अने केवल ज्ञानदृष्टिमां लोकालोक रूप सर्व विश्वनो समावेश थवाथी, सर्व धर्ममां जैन धर्म, सर्वाधिपत्य पदने योग्य छ । परंतु वर्तमानकाले तेवी ज्ञानदृष्टिना धारक निःसंगताधारक, धर्मराजकीयप्रकरणना परिपूर्णज्ञ, सर्वधर्मना द्रव्य क्षेत्रादि साथे जैन धर्मना द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भावने अवबोधीने तेवी स्थितिमा सापेक्षनययोगे विचारो अने आचारोने विश्वमा प्रवर्त्तावनार महात्माओना प्रादुर्भावनी साथे विश्व मनुष्यो जैन धर्मनु महान् वर्तुल अवबोधशे अने तेनो अनुभव करवा प्रयत्न करशे। क्रमशः धार्मिक गद्य संग्रह भाग - १, पृष्ठ - ६८० For Private and Personal Use Only

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