Book Title: Shrutsagar 2020 01 Volume 06 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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January-2020
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SHRUTSAGAR ठामि६ भात-पाणी त्रस लागइ, घीमाइं उतकसढूं।
आंबिल ते पाणीमां खावू, ए मुझ अतिहि उबीटुं८ एक ठाणइ बिठा नवि भावइ, एकदत्तइ(त्ति) दोहिली थावइ। अपवासइ अमलाइ बइसइ, छट्ठ करुं न सोहावइ अट्ठम ठामिउ कांटा आवइ, दसमी३२ अंधारा देखें । तपना लाभ घणा सांभलीइ, कीउं करुं हुं लेखं३३ राति दुविहार तिविहार न सांभरइ, चउव्विहारनी चतुराई। ढोर तणी परि जे ते खावं, उदय विना मूरखाई रींगण पीलू(गुं) बोर बिखोदां, मूला गाजर आएं। खो(षो)हिआं५ वासी विदल न मेहल्या, रात्रिभोजन खाएं नीलवण अढार भार कहिवरा(वा)इ, नरति मन्न न वालुं(ल्यु)। एक पान फल सांठा काजि, आलुं मुह विटाल्युं अथ(था)णां खाधां मुह सवादई, कांदा-ओषधी खाधी। आखा फल मुह करी भागां, पापडी घरमां रांधी टाढि ताप(पि?) भोइ२८ सामायक न करूं, उठि बइस न थाय। पडिक्कमणइ पाछा पग दीधां, पोसो ते न सोहाइ तल पीलंतां ते जो बोलुं, तो जग बहिरो थाइ। कपास लोढांवइ२९ पोढां° पातक, खोलिओत्री' कहिवाइ साबू लोढां २ गली कसूंबा, काणां५ सस्त्र मधू मीण। मांखण तवाव्या घरि जइ, नीच वहिराव्यां हीण एवा कुवणज ते मि कीधां, पापि पं(पिं)ड ज भारुं । नरगिं पडवू तरथ चूंथवं, ते भय नवि संभारु करणी माहा(ह)रुं जेह] हतुं ते, सरवि तुह्मनई कहि(ही)इ। देव दयापिं(पर?) ते तुह्म जाणो, सरणे तुह्मारे रहीइ दीक्षा लेवा भाव न कीधो, अंत्रायक कर्म माटि। थोडइ दोहिलि पुन्य घणु जीहां, देवलोकि जे साटि१
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