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SHRUTSAGAR
January-2020 स्तुति-स्तोत्रादि-साहित्यमा क्रमिक परिवर्तन
पुण्यविजयजी म.सा. परिवर्तनशील संसारमा एवी एक पण वस्तु नथी के जे दरेके-दरेक बाबतमां देश-काळ आदिना परिवर्तन साथे नवो अवतार धारण न करे। आ अटल नियमथी आपणुं स्तुति-स्तोत्रादि विषयक साहित्य पण वंचित नथी रही शक्यु, अर्थात जगतनी अनन्य विभूतिनुं पोतामां दर्शन करनार अने ते ज वस्तुनो बीजाने साक्षात्कार करावनार तीर्थंकर देव आदि जेवी महाविभूतिओने लगतुं स्तुति-स्तोत्रादि साहित्य उपर्युक्त शाश्वत नियमथी अस्पृष्ट नथी रही शक्युं, ए आपणे आपणा समक्ष विद्यमान विविध अने विपुल स्तुति-स्तोत्रादि-विषयक साहित्य- दिग्दर्शन करतां सहेजे जोई शकीए छीए।
एक समय एवो हतो के ज्यारे, अत्यारे आपणी नजर सामे देवोपासनाने लगतुं जे चित्र विचित्र स्तुति-स्तोत्र-स्तवनादि-विषयक साहित्य विद्यमान छे ते लेश पण न हतुं; तेम छतां एक बीजा दर्शन, एक बीजा संप्रदाय अने एक बीजी प्रजा साथेना सहवासने कारणे जनसमाजनी अभिरुचिने ते ते तरफ ढळेली जोई धर्मधुरंधर जैनाचार्योए ए प्रकारना साहित्यना निर्माण तरफ पोतानी नजर दोडावी अने क्रमे-क्रमे ए जातना साहित्यनो सागर रेलावा लाग्या । स्तुति-स्तोत्रादि साहित्य- सर्जन अने तेमां क्रमिक परिवर्तन
आजे आपणा समक्ष विद्यमान संगीतालापथी भरपूर स्तुति-स्तोत्र-स्तवनादिने लगता साहित्य राशिने जोई आपणने जरूर ए आशंका थशे के जे जमानामां आजना जेवू स्तुति-स्तोत्रादि साहित्य नहि होय ते जमानानी जनता आत्मदर्शन करनारकरावनार महाविभूतिओनी प्रार्थना कई रीते करती हशे? परंतु ते युगनी जनताना जीवन अने मानसनो विचार करतां एनो उत्तर सहेजे ज मळी रहे छे के ते युगनी स्तुति-उपासना-भक्ति ए मात्र अत्यारनी जेम काव्यमां-कवितामां के जिह्वामांवाणीमां उतारवारूप न हती; किन्तु ते स्तुति ए महापुरुषना चरितने अने तेमना पवित्र उपदेशने जीवनमां उतारवारूप हती। एटले ते जमानामां अत्यारनी जेम ढगलाबंध के चित्रविचित्र स्तुति-स्तोत्रादि साहित्यनी प्रजाने आवश्यकता नहोती जणाती। ए ज कारण हतुं के ते युगनी जनता माटे आचारांगसूत्र आदिमां आवती उपधानश्रुताध्ययन, वीरस्तुत्यध्ययन आदि जेवी विरल छतां विशद स्तुतिओ बस थती
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