Book Title: Shrutsagar 2020 01 Volume 06 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Catalog link: https://jainqq.org/explore/525354/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ISSN 2454-3705 श्रुतसागर श्रुतसागर SHRUTSAGAR (MONTHLY) January-2020, Volume : 06, Issue : 08, Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/ EDITOR: Hiren Kishorbhai Doshi BOOK-POST / PRINTED MATTER मानवभव उत्पत्ति सज्झाय लेख का प्रतिक चित्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KorerentreetORIESTATERNITION 96ARJAAN 2060 VIDEO POICE राष्ट्रसन्त पूज्य आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा का तुलसी जैन संघ, सेटेलाईट में पदार्पण For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 SHRUTSAGAR RNI : GUJMUL/2014/66126 January-2020 ISSN 2454-3705 (आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र) श्रुतसागर श्रृतसागर SHRUTSAGAR (Monthly) वर्ष-६, अंक-८, कुल अंक-६८, जनवरी-२०२० Year-6, Issue-8, Total Issue-68, January-2020 वार्षिक सदस्यता शुल्क - रु. १५०/- * Yearly Subscription - Rs.150/अंक शुल्क - रु. १५/- * Price per copy Rs. 15/ आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक * * सह संपादक * *संपादन निर्देशक * हिरेन किशोरभाई दोशी रामप्रकाश झा गजेन्द्रभाई शाह * संपादन सहयोगी राहुल आर. त्रिवेदी ज्ञानमंदिर परिवार १५ जनवरी, २०२०, वि. सं. २०७६, पोष कृष्ण पक्ष-५ न आराध वा कन्क हावीर जी श्री कोया श्तं तु विष्य प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध-संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फैक्स : (079) 23276249, वॉट्स-एप 7575001081 Website : www.kobatirth.org Email : gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर जनवरी-२०२० अनुक्रम १. संपादकीय रामप्रकाश झा २. गुरुवाणी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी ३. Awakening Acharya Padmasagarsuri ४. पार्श्वनाथ प्रभुना बे अप्रगट स्तवनो गणि सुयशचंद्रविजयजी ५. अवंतिसुकुमाल सज्झाय साध्वी दर्शननिधिश्रीजी ६. माणसभव उत्पत्ति भास जिज्ञाबेन शाह ७. स्तुति-स्तोत्रादि-साहित्यमां क्रमिक परिवर्तन मुनिश्री पुण्यविजयजी ८. प्राचीन पाण्डुलिपियों की संरक्षण विधि राहुल आर. त्रिवेदी ९. पुस्तक समीक्षा राहुल आर. त्रिवेदी १०. समाचार सार तप करता जोवन गयौ, लखमी गई पुन्यदान । काया गई वइराग मै, जीव तीनूं गया मत जाण ॥ प्रत क्र. १२८०३२ भावार्थ- जवानी तप करने में गई हो, पैसे दान-पुण्य में गए हों और देह वैराग्य में गया हो तो हे जीव ! इन तीनों को गया मत समझना। * प्राप्तिस्थान * आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनिक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR January-2020 संपादकीय रामप्रकाश झा श्रुतसागर का प्रस्तुत अंक आपके करकमलों में समर्पित करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है। इस अंक में आत्मा के वर्तुल को दर्शाने वाली योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा.की अमृतमयी वाणी के अतिरिक्त चार अप्रकाशित कृतियों को प्रकाशित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त वाचक अन्य उपयोगी स्तम्भों का भी अवलोकन करेंगे। प्रस्तुत अंक में सर्वप्रथम “गुरुवाणी" शीर्षक के अन्तर्गत आत्मा के अनन्त वर्तल के विषय में पूज्य आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के विचार प्रस्तुत किए गए हैं। द्वितीय लेख राष्टसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के प्रवचनों की पुस्तक Awakening' से संकलित किया गया है, जिसमें गुरु-शिष्य सम्बन्ध के ऊपर प्रकाश डाला गया है । अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम पूज्य गणिवर्य श्रीसुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा संपादित प्रभु पार्श्वनाथ के दो अप्रकाशित स्तवनों का प्रकाशन “पार्श्वनाथ प्रभुना बे अप्रगट स्तवनो” के नाम से किया जा रहा है। प्रथम कृति के कर्ता मुनि विमलविजय-शिष्य तथा द्वितीय कृति के कर्ता मुनि लालविजयजी हैं। इन कृतियों में भगवान पार्श्वनाथ के गुणों का वर्णन तथा नवकारशी, पच्चक्खाण, सामायिक आदि में आलस्यादि कारणों से होनेवाले दोषों का वर्णन किया गया है। तृतीय कृति के रूप में पूज्य साध्वीजी दर्शननिधिश्रीजी म.सा. के द्वारा सम्पादित “अवन्तिसुकुमाल सज्झाय” का प्रकाशन किया जा रहा है। इस कृति के कर्ता श्री मेरुविजयजी ने प्रस्तुत कृति में अवन्तिसुकुमाल के जीवनचरित्र और उनकी साधना का सुन्दर वर्णन किया है। चतुर्थ कृति के रूप में श्रीमती जिज्ञाबेन शाह के द्वारा सम्पादित “माणसभव उत्पत्ति भास" का प्रकाशन किया जा रहा है। इस वैराग्यपरक कृति के कर्ता नन्नसूरि ने मानवजीवन में होनेवाले दुःखों का वर्णन करते हुए आत्मकल्याण हेतु देव-गुरु और धर्म के आलम्बन हेतु प्रेरित किया है। __ पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत जैनधर्म प्रकाश, सुवर्ण महोत्सव विशेषांक, चैत्र, सं. १९९१ में प्रकाशित “स्तुति-स्तोत्रादि-साहित्यमा क्रमिक परिवर्तन” नामक लेख का प्रथम अंश प्रकाशित किया जा रहा है, इस लेख में स्तुति-स्तोत्रादि साहित्य का प्रारम्भिक स्वरूप तथा उसके क्रमिक विकास के ऊपर प्रकाश डाला गया है। गतांक से जारी “पाण्डुलिपि संरक्षण विधि" के अन्तर्गत ज्ञानमंदिर के पं.श्री राहलभाई त्रिवेदी द्वारा पाण्डुलिपियों के क्षतिग्रस्त होने के प्राकृतिक कारणों के ऊपर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा से प्रकाशित “रासपद्माकर, भाग-४” पुस्तक की समीक्षा प्रकाशित की जा रही है। इस पुस्तक में रासपरक प्राचीन कृतियों का संग्रह कर प्रकाशित किया गया है। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर जनवरी-२०२० गुरुवाणी ____ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी जैनदृष्टिए आत्मानुं अनन्त वर्तुल सापेक्ष नयदृष्टिथी रागादिनो उपशमादिभाव करीने जेओ आत्मज्ञानमां उंडा अवतरीने सर्वधर्मना वादोने स्याद्वादपणे आत्मामा परिणमावे छे, तेओ ज्ञानादि वर्तुलना पृथुत्व विकासथी सार्वभौम धर्मराज्य प्रवर्तक मुख्य नेताओ थवाना अधिकारी बने छ। जेओ सम्यग् ज्ञानादिए विशाल विचाराचार वर्तुलवाळा होइ अन्य धर्मोने अपेक्षाए स्वमां समाववा समर्थ बने छे, अथवा अन्य धर्मीय मनुष्यो पर उपशमादिदृष्टिए साम्यभाव धारीने स्वविचाराचार- महद् वर्तुल अवबोधाववा समर्थ बने छ । तेओ सर्व धर्म सर्वाधिपत्यने प्राप्त करी शके छे। आवी अधिकारता वस्तुतः स्याद्वाद दृष्टिधारक तत्त्वचिन्तक महाज्ञानीओने घटी शके छे । जे वर्तुलमां अन्य सर्व वर्तुलो समाइ जाय छे, ते वर्तुल वस्तुतः महान् गणाय छे । तद्वत् अत्र पण जे धर्मनी दृष्टिमां सापेक्ष नययोगे सर्व धर्म सत्य विचाराचारोनो अन्तर्भाव थाय छे। ते धर्म, सर्व धर्ममां सार्वाधिपत्य भावने धारी शके छे। लघु वर्तुलमां महावर्तुलनो समावेश थतो नथी, तद्वत् जे दर्शन धर्म वा मत पोताना लघु संकुचित विचारो अने आचारोवाळो छ । तेमां अन्य विशाल विचाराचारोवाळा महा धर्मोरूप महा वर्तुलोनो समावेश थतो नथी। वीतराग कथित स्याद्वाद दृष्टिए जैन धर्मनुं वर्तुल एवडुं बधुं महान् छे के तेमां अनेक नय सापेक्ष दृष्टिए सत्य विचारो अने आचारो भिन्न-भिन्न अधिकारीओ माटे असंख्य प्रकारे भिन्न छे तेमां विचारोनी अपेक्षाए सर्व धर्मना तत्त्व विचारोनो सापेक्ष दृष्टिमा समावेश थाय छे, अने चारित्यरूप बाह्याभ्यन्तर आचारोनी अपेक्षाए अविरति-देशविरति सर्वविरति आदि आचारोनो चारित्र धर्ममां समावेश थाय छे। चारित्र धर्मना आचारोना असंख्य भेदो छे, अने सापेक्षपणे एकेक आचारने पाळतां धर्मनी आराधना होइ शके छे आवी स्याद्वादनयोनी अपेक्षावाळा जैनदर्शनरूप महासागरमां सर्व धर्मना विचारो अने आचारोनो समावेश थवाथी, अने केवल ज्ञानदृष्टिमां लोकालोक रूप सर्व विश्वनो समावेश थवाथी, सर्व धर्ममां जैन धर्म, सर्वाधिपत्य पदने योग्य छ । परंतु वर्तमानकाले तेवी ज्ञानदृष्टिना धारक निःसंगताधारक, धर्मराजकीयप्रकरणना परिपूर्णज्ञ, सर्वधर्मना द्रव्य क्षेत्रादि साथे जैन धर्मना द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भावने अवबोधीने तेवी स्थितिमा सापेक्षनययोगे विचारो अने आचारोने विश्वमा प्रवर्त्तावनार महात्माओना प्रादुर्भावनी साथे विश्व मनुष्यो जैन धर्मनु महान् वर्तुल अवबोधशे अने तेनो अनुभव करवा प्रयत्न करशे। क्रमशः धार्मिक गद्य संग्रह भाग - १, पृष्ठ - ६८० For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR January-2020 Awakening Acharya Padmasagarsuri (from past issue...) The Teacher and the Disciple 'गु' शब्दस्त्वन्धकारस्याद 'रु' शब्दस्तन्निरोधकः। अन्धकार निरोधित्वाद् गुरुरित्यभिधीयते ॥ ‘Gu’ sabdastwandakarsyad “Ru’ sabdastannirodakah AndhakaranirodhithwadGururityabhidhiyate The sound “Gu” means darkness; and the sound, “Ru” means one who dispels it. We give the title Guru to a person who expels the darkness of ignorance What does a blind man want? If anyone can give eye-sight to a blind man, he will be grateful to him throughout his life. The teacher performs the task of opening the mental eyes of his disciples. Hence he deserves the highest veneration. अज्ञान-तिमिरान्धानाम् ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ Ajnana timirandhanam Jnananjana salakaya Chakshurunmilitam yena Tasmai Sri Gurave namah We worship him as our teacher who opens with the collyrium-stick of knowledge the mental eyes of one who is mentally blind or ignorant. The teacher must possess knowledge. Moreover, his actions and conduct also should be noble. He must act in accordance with his precepts; otherwise, he is not a true teacher according to the exponents of Shastras. He may feel happy and elated thinking that he is a teacher because he can deliver pompous discourses, but if he does not act according to his precepts, he cannot occupy the high place of a teacher. Such teachers would repent in future. Mahatma Kabir has given a warning to such people in these words: For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर जनवरी-२०२० कहते सो करते नहीं, मुँह के बडे लबार। काला मुँह हो जायगा, सांई के दरबार ॥ kahate so karate nahi muh ke bade labar Kala muh ho jayaga sayi ke darbar The words of those who preach without practising, are deceptive. In the Lord's court, their faces will grow dark with guilt. We cannot accept a man as a teacher on the basis of his dress. Here is a famous proverbial statement: पानी पीजे छानकर गुरु कीजे जानकर !! Pani pije chankar Guru kije jankar !! Drink water after purifying it; and accept a man as your teacher after knowing him. We should decide upon accepting a man as our teacher only after finding out his fitness. Swami Satyabhakta has written: “There is the snare of bad teachers spread over the world. Undertake the task of cutting it off with your intellectual incisiveness. These bad teachers do not have knowledge or self-control. They are also not helpful to others. These unfit sadhus in the guise of teachers are a burden to the earth”. The implication of this is that a real teacher is he who has knowledge, self-control and magnanimity and the desire to help others. The sculptor by virtue of his skill, transforms a stone into an image. If stone should become adorable as an image it has to endure the hard strokes of the chisel. In the same manner, a great teacher transforms his disciples into great men. Rawness and insipidity change into humanity; and humanity changes into divinity under the impact of a great teacher. A disciple becomes noble and enlightened only after he endures the teacher's severe admonitions and the strokes of his cane. (continue...) For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR January-2020 पार्श्वनाथ प्रभुना बे अप्रगट स्तवनो ____ गणि सुयशचंद्रविजयजी आपणे त्यां सौ प्रथम नमुत्थुणं स्तोत्रथी प्रारंभीने प्राकृत भाषामां अने त्यार पछी अनुक्रमे अपभ्रंश, संस्कृत भाषामां तीर्थंकरोने आश्रयीने स्तोत्रो बनावाया। काळक्रमे ते स्तोत्रोमां तीर्थंकरोना माहात्म्यने वधारती रचनाओए पण स्थान लीधुं । जेना फळस्वरूपे विविध तीर्थोनु तथा प्रभुनी कल्याणक भूमिओनुं स्तोत्रादि विषयक साहित्य आपणने मळ्यु । आम भक्तिपरक रचातुं साहित्य फक्त भक्तिपरक न रहेता इतिहासपरक पण बन्यु। वळी आ ज परिपाटी गुर्जरादि प्रादेशिक भाषा साहित्यमां पण रही। जो के अहीं जे-ते प्रादेशिक भाषा बोलनारो, समजनारो वर्ग बहोळो होई संस्कृत-प्राकृतादि भाषाना काव्यो करता गुर्जरादि भाषा काव्योनो प्रचार-प्रसार खूब वध्यो । ते भाषाओमां रचनाओ पण खूब थई अने वंचाई पण खूब । आपणे आवा स्तोत्रोनु सामान्यथी विषय प्रमाणे वर्गीकरण करीए तो ते मुख्यपणे ३ प्रकारे विभाजित करी शकाय (१) गुणस्तुतिपरक काव्यो- जेमां प्रभुना गुणवैभवस्वरूप वर्णवायु होय ते, (२) तत्त्वपरक काव्यो- जेमां प्रभुना जीवननी कोई नोंध जेम के माता-पिता-ग्रामादिना उल्लेख होय के कर्मग्रंथादिना पदार्थोने वर्णवती रचना होय ते, (३) आत्मनिंदापरक काव्यो- जेमां पोते आचरेला प्रमादोनु-दोषोनु-पापोर्नु आलोचन करवा रूप प्रभुस्तवन होय ते। प्रायः आ वर्गीकरणमां तीर्थंकरादि संबंधि दरेक स्तोत्रने वहेंची शकाय। जेम के ३४ अतिशय वर्णन स्वरूप, ८ प्रतिहार्यनी गुंथणी स्वरूप रचाता स्तवनादि पण आमां ज (बीजा प्रकारमा) विभाजित करी शकाय, तो मंत्रगर्भित(देवदेवीना) स्तोत्रोने पण आमां (बीजा प्रकारमा) विभाजित करी शकाय। । प्रस्तुत अंकमां प्रकाशित बन्ने रचनाओ पण आवी ज भक्तिपरक रचनाओ छ। तेमां पहेली कृति बहुलतया गुणस्तवनापरक छे, ज्यारे बीजी कृति आत्मनिंदापरक छ। पहेली कृति कपडवंजना चिंतामणि पार्श्वनाथ प्रभुने उद्देशीने रचाई छे तो बीजी कृति झोटाणामंडण अजितनाथ-पार्श्वनाथ प्रभु पासे गवाई छ । भाषा तो बन्नेनी मारुगुर्जर छे, परंतु पहेली कृति करता बीजी कृतिना शब्दो थोडा वधु क्लिष्ट न समजाय तेवा छे । खास तो बेमांथी एकपण कृतिमां कृति रचना वर्ष नथी। परंतु ग्रंथकारनी कृति रचना प्रशस्ति परथी पहेली कृतिनी रचना १७मी सदीना उत्तरार्धमां ज्यारे बीजी कृतिनी रचना १८मी सदीना पूर्वार्धमा होवानुं अनुमान करी शकाय। जो के कर्तानी अन्य कोई रचना मळेथी ते अंगे वधु विचारी शकाय। For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 10 जनवरी-२०२० कृति परिचय १. कर्पटवाणिज्यमंडण चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन प्रस्तुत कृति कपडवंजना चिंतामणि पार्श्वनाथप्रभुना गुणवैभव गान करती रचना छे। अहीं कृतिकारे काव्यना मंगलाचरणमां 'मां' शारदाने नमस्कार करी अविरल वाणी आपवानी तेमने प्रार्थना करी छे । त्यारपछीना ७ पद्यो प्रभुना गुणोनी तथा प्रभुना दर्शनथी थता लाभोनी वर्णना छे। ढाळना अंत्यपद्यमां अग्निकुंडमांथी प्रभु पार्श्वनाथे उगारेला सर्पना धरणेन्द्र थयानी घटनानो उल्लेख करी कविए त्यारपछीनी मारूणी/ सामेरी रागनी बीजी ढाळना शरूआतना पद्यमां प्रभु पार्श्वना पुरुषादाणी स्वरूपनी वर्णना आलेखी छे । आ ढाळनी मुख्य वर्णना प्रभु वडे परास्त करायेल भावशत्रुओना स्वरूप चित्रणनी तथा केवळज्ञानी प्रभु पार्श्वनाथना स्मरणमात्रथी प्राप्त थता लाभोना सदृष्टांत निरूपणनी छ । काव्यनी छेल्ली ढाळ केदार रागनी छे । अहीं कविए प्रभु पासे पोतानी अविहड प्रीतिनुं बयान करता तेना फळस्वरूपे केवळज्ञाननी अने ते न मळे त्यां सुधी पद सेवनानी मांगणी करता काव्यर्नु समापन कर्यु छे । कृतिना अंते कर्ता माटे लख्यु छ केउवज्झाय विमलहरष सुंदर श्रीमुनिविमल वाचक गुणी, तस सीस पामइ पास नामइ भाव सख संतति घणी ॥२९॥ विमलहर्ष उपाध्यायना शिष्य मुनिविमल अने तेमना कोई शिष्य द्वारा रचना थई होय तेवू जणाय छे। २. आलोचनागर्भित झोटाणामंडण अजितनाथ-पार्श्वनाथ स्तवन प्रस्तुत कृतिना प्रथम पद्यमां कविए झोटाणांमंडण अजितनाथ अने पार्श्वनाथ प्रभुनी पासे आलोचना करी निर्मळ थवानी वात गुंथी छे । कोईक पाछला भवना पुण्यथी जीवने मानव भव, जैन कुळ तथा उत्तम सामग्री मळी होवा छतां धर्म अंगेनो कशो पुरुषार्थ न कर्यानो वलोपात कविए काव्यना बीजाथी चोथा पद्यमां करेलो जोवा मळे छे। ते ज रीते त्यारपछीना ६ पद्यो नवकारशी विगेरे पच्चक्खाण करवामां जीवे करेला प्रमादनी वर्णना आलेखता जोई शकाय छ। आ ज क्रमना आगळना ४ पद्योमां कवि कल्प्य-अकल्प्य खाद्य पदार्थनो विवेक न धरावता अने तेना सेवनथी बंधायेला दोषोनी तथा सामायिक, पौषधादिक व्रतोमां करेल आळसनी वातो रजू करे छे। त्यारपछी काव्यगत आलोचना वर्णनना अंत्य चरणमां कवि कुव्यापारथी बंधाता पापोनी, दीक्षा न लेवा आचरेला प्रपंचनी तथा देवलोक माटे करायेल नियाणानी आलोचना करवा द्वारा सर्व भूलोना प्रभु पासे एकरार करी छेल्ले स्वगुरूपरंपराना उल्लेख साथे 'आवागमन For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 ॥१॥ SHRUTSAGAR January-2020 निवारो' ना पद साथे मुक्तिसुखनी मांगणी करता काव्यनुं समापन करे छ। कृतिना अंते विजयसेनसूरि, विजयतिलकसूरिना उल्लेख पूर्वक पोताना गुरु शुभविजयजी, स्मरण करी लालविजयजीए पोतानो नामोल्लेख कर्यो छे । मुनि विमलविजय-शिष्य कृत कर्पटवाणिज्यमंडण चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन Gon श्रीजिन वदन-कमलि निति वसती, कविजन-जननी वाणी रे। श्रीजिनवर गुण थुणतां मुझनिं, देयो अविरल वाणी रे श्रीचिंतामणि पास जिनेसर, गाऊं त्रिभुवन-दीप रे। अश्वसेन-नरपति-कुलदीपक, भवसागर विचि दीप रे ॥२॥ श्रीचिंतामणि... जगत्र(त)-पितामह जगसुखकारी, जगतारण जगदीस रे। जगबंधव जगवल्लभ तोरी, सेव करूं निसि दीस रे ॥३॥श्रीचिंतामणि.. परहितकारी परमदयालूं, परमेसर तूं दीठउरे। हवइ हूं मनमांहिं इम जाणुं, कल्पवृक्ष मुझ तूठउरे ॥४॥श्रीचिंतामणि... कामधेनु मुझ पासिं आवी, चिंतामणि करि चडिउं रे। जब तुझ वदनकमल मई भेट्युं, तब दुख दूरि पडिउं रे ॥५॥श्रीचिंतामणि... आज अपार भवोदधि तरिउ, भरिउ सुकृत-भंडार रे। आज अमृत परिघल मइं पीधउं, जु कीधउं तुझ दीदार रे ॥६॥श्रीचिंतामणि... मिथ्या-दरिसन रोग हतो जे, भव अनंतनु लागउ रे। तुझ दरिसन अमृतरस पीता, तेह तणु मद भागउरे ॥७॥श्रीचिंतामणि... सबल वायु पूरई करि जिनजी, वादल-दल जिम त्रूटइ रे। तिम तुझ दरिसन भावई करतां, पाप तणूं बल खूटइ रे ॥८॥श्रीचिंतामणि... प्रभुजी तुझ दरिसन महिमाइं, आगि बलतुं नाग रे। नागकुमार तणुं थयुं स्वामी, धरण नाम महाभाग रे ॥९॥श्रीचिंतामणि... ॥ ढाल ॥राग- सामेरी अथवा मारुणी॥ अश्वसेन नृप वंश तुम्हे दीपाविउ रे, धन धन वामा जेणीइं तूं सुत पाविउ रे। For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनवरी-२०२० ॥११॥ ॥१२॥ ॥१३॥ श्रुतसागर ___12 तुझ सेवक निसि दीस नागपति भाविउ रे, पुरुषादानी देव तूं हि कहाविउरे राज्यरिद्धि भंडार अंतेउर परिहरि रे, संयम-रमणी दुख-नीगमणी' तइं वरी रे। मोट(ह?) कटकस्युं झूझ्यो तूं धीरज धरी ए, मयण महाभड जीत्यो तव हठ आदरी रे रोस महा भड लीलाइं करी तइं दम्यो रे, कमठासुरिं उपसर्ग कर्यो ते तई खम्यो रे। तव आवी धरणिंदो तुझ चरणे नम्यो रे, बीहनो तस वयणेहिं कमठ पणि तुझ नम्यो रे राग रंक परि रोल्यो वइरागई करी रे, मानिं दीधी पूंठि वेला जोइ आकरी रे। माया वइरिणि(णी?) नाठी जिम कूटी खरी रे, लोभई पणि पग कीधा नवि जोयुं फरी रे मोह तणूं बल भाज्यूं तई सघलूं दली१२ रे, मोह महीपति नाठु तव मनि खलभली रे । नाणावरणी आदिक मित्र तेहना मिली रे, त्रिणि ततखिण नाठा बीहकइ झलफ(झ?)ली१३ रे तव हरखइं केवल लखिमीइं तूं वर्युरे, च्यार निकायने देवे प्रभु तूं पर(रि)वर्यु रे । देवदुंदुभी नादई तव तिहुअण भर्युरे, धर्ध(म) कहीनंइ लोक सकल तई उद्धर्यु रे कर्म-मइल सवि टाली तूं निरमल थयो रे, निराकार निकलंक तूं मुगतिं गयु(यो) रे। तूं हि निरंजन देव के जगरंजन कह्यो रे, वीतराग परमेसर तूं प्रभु मइं लह्यो रे ।१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir January-2020 ॥१८॥ ॥१९॥ ॥२०॥ SHRUTSAGAR ___13 तुझ महिमाइं लोक सयल आणंदीइ रे, तुझ नामइं पणि सघलां पाप निकंदीइ५ रे । तीन भुवन तस वंदइ जेण६ तूं वंदीइ रे, तूं तूठउ निज पदवी सेवकनिं दीइ रे देव दयापर समर्यो गोविंदइं यदा रे, ततखिणि तई तस दीधी जय-लखिमी तदा रे। भद्रबाहुसामि(मिइं) पणि तूं समर्यो मुदा रे, तव तई मारि निवारी दीधी संपदा रे सिद्धसेनसूरिंदई तूं संभारिउ रे, तव तइं दरिसन देई विक्रम भूप तारिउ रे* । अभयदेव गुरु केरउ रोग निवारिउ रे, एणी परि सेवक लोक घणुं तई तारिउ रे ॥ढाल ॥राग-केदारउ॥ एहवा तुझ गुण मइं सुण्या, गुरु तणे वयणे उल्लासिं रे। हरिहरादिक तव छंडिआ, आविउं हूं तुझ पासिं रे जय जय पास चिंतामणी, चिंतित-पूरण देव रे। कल्पवेली सही मइं लही, पामीअजु तुझ सेवरे जेहवो दिनकर कमलनइं, जेहवो चंद चकोर रे। जेहवो मालती मधुकरा, जेहवो मेहनइं मोर रे तिहुअण-वालिंभ तुज्झस्युं, तेहवो मुझ हुउ नेह रे। अविहड प्रेम प्रभु राखयो, दाखयो मां हवइ छेहरे नीर जिम नीरनिधि केरडूं, दिनि दिनि वाधतूं जोय रे। उत्तम जन तणी प्रीतडी, तिम प्रभु वाधती होय रे जो हि हूं मूढमति अतिघणूं, गुण पणि नहीं मुझ एक रे। तो हि हूं तारवो तइं१९ प्रभू, सेवक भणीअ सुविवेक रे ॥२१॥ ॥२२॥जय... ।।२३।।जय... ॥२४॥जय... ॥२५॥जय.. ॥२६॥जय.. * पाठांतर- ईसर केरु नाद के तव ऊतारिउ रे. For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___14 जनवरी-२०२० श्रुतसागर तुझ प्रसादई करी मइं लह्यो, ताहरु धर्म जगभाण रे। तेहनूं फल हवइ दीजि(जी)इ, वेग करि(रु) केवलनाण रे वंछितदायक तूं सुण्यो, मांगीइ तेण जगदीस रे। भवि भवि सेवना तुम तणी, पूरयो एह जगीस रे ॥२७||जय.. ॥२८॥जय... कलस श्रीकपडवाणिज-नगरमंडण वीनव्यो इम जगधणी, धरणिंद पउमावई सेवित पास श्रीचिंतामणी। उवज्झाय विमलहरष सुंदर श्रीमुनिविमल वाचक गुणी, तस सीस पामइ पास नामइ भाव सुख संतति घणी मुनि लालविजयजी कृत आलोचनागर्भित झोटाणामंडण अजितनाथ-पार्श्वनाथ स्तवन ॥२९॥ ॥१॥ ॥२॥ on भट्टारक श्री७ श्रीविजयाणंदसूरिगुरुभ्यो नमः ।। श्रीगुरु प्रणमी सरसति समरी, अजित पास आराहुं। झोटाणामंडण जिन आगलि, आलोइ° निर्मल थाउं हविं देव तुह्म नामिं छूटुं, नहीं बोलुं हुं खोटुं। राव करुं नी(नि)ज ठाकुर आगलि, तुं मुझ भायग२ मोटुं कोइक पाछिला पुन्य-प्रभावइ, मानव- भव लाव्यु(ध्यु)। देव-गुरु-धर्म तणी सामग्रही(ग्री), लेई तुह्म सरणे आव्यु मइं आ भव जातु३ नवि जाणो(ण्यु), व्रत पच्चखाण न कीधा। पुन्य करुं नहीं पाप करुं बहु, आडा उत्तर दीधा नुकारसी संभरइ नहीं मू(मु)झ, पोरसि मन्न न जाइ। साढपोरसि लगिं न खमाइ, पुरिमढ मोडु थाइ बिइं(या)सणुं करुं संतोषि(ष) नहीं मुझ, जे ते बिठो ठूगु। एकासणइ बिठा न रहिवाइ, निविइं लूटुं कवं(व)गुं२५ ॥३॥ ॥४॥ ॥५॥ ॥६॥ For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 January-2020 ॥७॥ ॥८॥ ॥९॥ ॥१०॥ ॥११॥ ॥१२॥ SHRUTSAGAR ठामि६ भात-पाणी त्रस लागइ, घीमाइं उतकसढूं। आंबिल ते पाणीमां खावू, ए मुझ अतिहि उबीटुं८ एक ठाणइ बिठा नवि भावइ, एकदत्तइ(त्ति) दोहिली थावइ। अपवासइ अमलाइ बइसइ, छट्ठ करुं न सोहावइ अट्ठम ठामिउ कांटा आवइ, दसमी३२ अंधारा देखें । तपना लाभ घणा सांभलीइ, कीउं करुं हुं लेखं३३ राति दुविहार तिविहार न सांभरइ, चउव्विहारनी चतुराई। ढोर तणी परि जे ते खावं, उदय विना मूरखाई रींगण पीलू(गुं) बोर बिखोदां, मूला गाजर आएं। खो(षो)हिआं५ वासी विदल न मेहल्या, रात्रिभोजन खाएं नीलवण अढार भार कहिवरा(वा)इ, नरति मन्न न वालुं(ल्यु)। एक पान फल सांठा काजि, आलुं मुह विटाल्युं अथ(था)णां खाधां मुह सवादई, कांदा-ओषधी खाधी। आखा फल मुह करी भागां, पापडी घरमां रांधी टाढि ताप(पि?) भोइ२८ सामायक न करूं, उठि बइस न थाय। पडिक्कमणइ पाछा पग दीधां, पोसो ते न सोहाइ तल पीलंतां ते जो बोलुं, तो जग बहिरो थाइ। कपास लोढांवइ२९ पोढां° पातक, खोलिओत्री' कहिवाइ साबू लोढां २ गली कसूंबा, काणां५ सस्त्र मधू मीण। मांखण तवाव्या घरि जइ, नीच वहिराव्यां हीण एवा कुवणज ते मि कीधां, पापि पं(पिं)ड ज भारुं । नरगिं पडवू तरथ चूंथवं, ते भय नवि संभारु करणी माहा(ह)रुं जेह] हतुं ते, सरवि तुह्मनई कहि(ही)इ। देव दयापिं(पर?) ते तुह्म जाणो, सरणे तुह्मारे रहीइ दीक्षा लेवा भाव न कीधो, अंत्रायक कर्म माटि। थोडइ दोहिलि पुन्य घणु जीहां, देवलोकि जे साटि१ ॥१३॥ ॥१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनवरी-२०२० ॥२०॥ श्रुतसागर 16 श्रीविजयसेनसूरि परमभट्टारक, श्रीविजयतिलकसूरिराज। संघ चतुर्विध जेह]नि सोहइ, दिन दिन अधी(धि)क विराजइ शुभविजय पंडित पाय सेवी, लालविजय कहि तारो, देव दयापर पार उतारो, आवागमन निवारो ॥ इति ॥ शब्दकोश ॥२१॥ १. द्वीप, २. फळ्यो , ३. (वायुना) प्रचंड दबाणथी, ४. राणीओ, ५. दुःख दूर करनारी, ६. सैन्य साथे, ७. डरी जई, ८.नष्ट कर्यो, ९. पीठ बताडवी-पीछेहट करवी, १०. मारी, ११. जतो रह्यो, १२. नाश कर्यु, १३.खळभळी, १४ कर्मरूपी मेल, १५. नाश करे, १६. जेना वडे, १७. त्रिभुवनमां प्रियतम, १८. कपट, १९. तारे/ते, २०. आलोचना करी, २१.फरीयाद, २२. भाग्य, २३. जतो, २४. ठांसीने खावं, २५. अगवड भरेलं, २६. ठाम चोविहारमां, २७. ?, २८. अणगमतुं, २९. एक दत्ति= एक ज वारमां लीधेलु मोंमा एक बाजुज चावी खावू ते (?), ३०. वळ खावो(?) आळस खावी, ३१.शूळ= त्रास, ३२. चार उपवास, ३३. गणतरी करुं, ३४.?, ३५.?, ३६. द्विदळ, ३७. निश्चयथी, ३८. पृथ्वी पर, ३९. कपासमांथी बी छूटा पाडवारूप क्रिया, ४०. मोटा, ४१.?, ४२. लोढुं(?), ४३. गळी, ४४. अफीण, ४५.?, ४६. दारू, ४७.?, ४८. कुव्यापार, ४९.?, ५०. दया करवामां तत्पर, ५१. ना माटे. श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं अथवा किसी महत्त्वपूर्ण कृति का नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, जिसे हम अपने अंक के माध्यम से अन्य विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादनकार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? इस तरह अन्य विद्वानों के श्रम व समय की बचत होगी और उसका उपयोग वे अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों के सम्पादन में कर सकेंगे. निवेदक सम्पादक (श्रुतसागर) For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir January-2020 SHRUTSAGAR मेरुविजयजी कृत अवंतिसुकुमाल सज्झाय साध्वी दर्शननिधिश्रीजी प्रभुवीरनुं शासन २१,००० वर्ष सुधी अखंडितपणे चालवानुं छे । एमनी उज्ज्वळ परंपरामां अनेक महापुरुषो अने महासतीओ थई गया। भरहेसरनी सज्झायमां जेमनुं नाम लेवाय छे, एवा 'जंबुपहू वंकचूलो गयसुकुमालो अवंतिसुकुमालो' । आ अवंतिसुकुमाल प्रभुवीरनी सातमी पाटे थई गया एवं मेरुविजयजी म.सा. कहे छ। महापुरुषो अने महासतीओना जीवनचरित्रो आपणने जीवन केवी रीते जीवq, जीवननी विषम परिस्थितिमा उपशमभाव केवी रीते राखवो तेमज अनुकूळताओ अने धनवैभवने छोडी प्रतिकूळताओ अने त्यागनो मार्ग केवी रीते अपनाववो ते शीखवे छे। ___कहेवत पण छे के, “हरिनो मारग छे शूरानो नहीं कायरनुं काम जो ने...” प्रभुनो मार्ग शूरवीरोनो मार्ग छे । कायरनुं त्यां कोई काम नथी। धर्ममार्गे पोतानी प्रचंड शूरवीरताने उजागर करनार महापुरुष अवंतिसुकुमालनी वात आ सज्झायमां करवामां आवी छ। कृति परिचय प्रस्तुत कृति प.पू. श्री जयविजयजी ना शिष्य मुनि श्री मेरुविजयजी म.सा. द्वारा मारुगुर्जर भाषामां रचायेली छे। तेनी कुल १८ गाथाओ छ। आ लघुकृतिमां अवंतिसुकुमालना जीवनचरित्र अने साधनानुं सुंदर वर्णन छ। कर्ता द्वारा कृतिनी शरूआतमां ज प्रभुवीरने प्रणाम करतां जणावे छे के, ‘श्रीजिनशासन नायकोजी धुरि नमी वीर जिणंद....। ___ गाथा-२ थी १७ सुधी अवंतिसुकुमालना जन्म, विवाह, धनवैभव, गुरुनु आगमन, स्वाध्याय घोष, संयमना भाव, जातिस्मरण ज्ञान, रंगे-चंगे संयम स्वीकार, स्मशानभूमिमां कायोत्सर्ग ध्यान, घोर उपसर्ग छतां पण समताभाव, नलिनीगुल्म विमानमा उत्पत्ति, पुत्र द्वारा पिता-मुनिनी यादमां जिनप्रासाद- निर्माण विगेरेनुं रसाळ अने रोचक वर्णन करवामां आव्यु छ। गाथा नं. १८मां कर्ता कहे छे के एवा साधुने नमतां सुखनी प्राप्ति थाय छ। आ खरेखर अवंतिसुकुमालना जीवनने दर्शावती श्रेष्ठ कृति छ। कर्ता परिचय आ कृतिना कर्ता तपागच्छीय पू. जयविजयजीना शिष्य मुनि श्री मेरुविजयजी छ। एनो उल्लेख कृतिना अंतिम गाथामां जोवा मळे छे। तेमनी स्तुति, स्तवन सज्झाय आदि लगभग २४ जेवीकृतिओमळे छे,जेमां१) वज्रस्वामी सज्झाय, २) अइमुत्तामुनि सज्झाय, For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 श्रुतसागर जनवरी-२०२० ३) स्थूलिभद्र सज्झाय, ४) वल्कलचीरी सज्झाय, ५) मेतार्यमुनि सज्झाय, ६) जम्बूकुमार सज्झाय, ७) बाहुबली सज्झाय ८) पार्श्वजिन स्तवन, ९) अजितजिन स्तुति, १०) वासुपूज्यजिन स्तुति, ११) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति १२) १० प्रश्न प्रदेशीराजा सज्झाय, १३) २४ जिनस्तवन, १४) इरियावही सज्झाय,१५) दीपावलीपर्वचैत्यवंदन, १६) नवकारवाली सज्झाय, १७) नववाड सज्झाय, १८) नेमिजिन रागमाला, १९) पाक्षिकप्रतिक्रमणविधि सज्झाय २०) प्रतिक्रमणविधि सज्झाय, २१) मुहपत्तिबोल सज्झाय, २२) विजयराजसूरि सज्झाय, २३) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, २४) धन्नाकाबंदी सज्झाय विगेरे प्रसिद्ध रचनाओ प्राप्त थाय छे। कर्तानो समय अन्य कृतिओना आधारे वि.सं. १८वी पूर्वार्धनी आसपासनो लागे छे। ते सिवाय कर्ता विषे अन्य विशेष कोई माहिती प्राप्त थई नथी। प्रत परिचय __ प्रस्तुत कृतिनुं संपादन आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबानी एकमात्र हस्तप्रत नं. ४९७२० ना आधारे करवामां आव्यु छ । मात्र एक ज पानानी प्रत छे, जेना अक्षर सुंदर अने सुवाच्य छे। हरतालथी संशोधित छे । पत्रनी एक तरफ १२ पंक्तिओ अने प्रतिपंक्ति ३५ अक्षरो छे अने बीजी तरफ १३ पंक्तिओ अने ३३ अक्षरो छे । प्रतनी स्थिति अने लेखनशैलीना आधारे तेनो समय वि.सं. १९वी अनुमानित कही शकाय छे। अवंतिसुकुमाल सज्झाय ॥१॥ ॥२॥मु०... Mou ॥ ढाल वीर वखाणी राणी चेलणा जी ए देसी॥ श्रीजिनशासन नायको जी, धुरि नमी वीर जिणंद। गायस्युं मुनि महिमा निलो जी, अवंतीसुकुमाल मुणिंद मनिजन मन उपशम धरो जी. उपशम परम रसाल। उपशमथी सुख पामिइं जी, जिम अवंतीसुकुमाल नयरी उजेणी अति दीपती जी, राज करइ संप्रती भूप। तेणि पुरी एक भद्राभिधा जी, सारथवाही सरूप तास ऊअरि सुरलोकथी जी, चवी सुर लइ अवतार। नलिनीगुलम सुविमानथी जी, भोगवी सुर सुख सार जनमथी पुत्र सोभागीउ जी, पूरव पुण्य प्रमाण। यौवनवय परणावीउ जी, बत्रीस रमणी सुजाण ॥३।।मु०... ॥४॥मु०... ॥५।।मु०... For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 January-2020 ॥६।।मु०... ।।७।मु०... ॥८।।मु०... ॥९॥मु०... ॥१०॥मु०... ॥११।।मु०... SHRUTSAGAR बत्रीस कोडि सोवन दीइंजी, बत्रीस घरि परिवार। भोगवइ सुख दिन दिन नवां जी, देव परि मणु अवतार तिहां एक दिन गुरु आविआ जी, आरय सुहत्थि अणगार। वसति यावी सुभद्रा घरइ जी, रहइ मुनि सुकृत भंडार राति मुनिजन गणतइ सुणइ जी, नलिनीगुलम अधिकार। कुमर चितमाहिं इम चिंतवइ जी, पूरव भवि मइ सुण्यो सार इम ईहापो करतइ लहइ जी, जातिसमरण नर तेह। नलिनीगुलम सुख पेखिआ जी, पूरव भवि भोगव्यां जेह ते सुख तो हवइ हुं लहुं जी, जो तनुं एह जंजाल। इम घरी ऊपरिथी ऊतरइ जी, जाइ जिहां तेह मुनिपाल गुरुजी तुम वचनि वेरागीउ जी, द्यो मुज संयमभार। जहा सुहं सुणी व्रत आदरइ जी, तजी तृण जिम परिवार तेह दिनि गुरु कही चालीउ जी, साधवां आपणां काज। जइ मसाणभूइ काउसगं रहइ जी, अचल मन मुनि सिरताज ताम वनमाहिथी आविनइ जी, स्यालणी करइ उपसर्ग। चटचट चांबडी चूटती जी, बोडइ त्रटण सवर्ग सहइ परीसह अति आकरो जी, नलिनीगुलम एक ध्यांन। कालधरम करी उपनो जी, सुर पणइ तेणि विमान प्रात समइ मात सवि कामिनी जी, लही मुनिथी अवदात। दुख धरी मन करी आकरुं जी, ठामि निज कामि सहु जात एक भवि अंतरि शिव जसइ जी, धन अवंतीसुकुमाल। वीरथी सातमां पाटनइ जी, वारइ हुउ ते मुनिपाल घर सगर्भा वनिता तजी जी, तास सुत तेह वन ठामि। जैनप्रसाद सुपरइ कइ जी, महाकाल एहव नामि पंडित चक्र चूडामणी जी, श्रीजयविजय बुधराय। सेवक मेरु कहइ एहवा जी, साधु नमंता सुख थाय ॥ इति सज्झाय॥ ॥१२॥मु०... ॥१३।मु०... ॥१४॥मु०... ॥१५।।मु०... ॥१६।।मु०... ॥१७।।मु०... ॥१८॥ For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 श्रुतसागर जनवरी-२०२० नन्नसूरि कृत माणसभव उत्पत्ति भास जिज्ञाबेन शाह देव, तिर्यंच, नारक अने मनुष्य आ चार गतिओमांथी एक मनुष्यभवनी गतिमांज जीव धर्म करी पोताना आत्मानुं उत्थान करी शके छे । पण आवा अमूल्य मनुष्यभवने जीव केवी रीते वेडफी नाखे छे, ते समग्र चितार आ भासमां रजू को छ। अनादि कालथी जीव निगोदमां हतो। अने त्यां एक साथ अनंत जीवनी साथे अनादि काळ रह्यो। एक सिद्धनो जीव ज्यारे मोक्षे जाए, त्यारे एक जीवने आ निगोदमांथी बहार आववा मळे अने त्यारबाद कालक्रमे अनंत पद्गल परावर्तन काल सुधी एकेन्द्रियादि योनिओमां जीव परिभ्रमण कर्या ज करे छे । ज्यां तेने धर्म करवानो योग ज मळतो नथी। आ रीते परिभ्रमण करता करता आ जीवने क्यारेक मनुष्यभवनी प्राप्ति थाय छे। त्यां पण समग्र भवमां धर्म करवानो विचार पण करतो नथी अने धर्म कर्या वगर ज मृत्यु ने पामे छे अने मनुष्यना आवा अनंत भवो ते वेडफी नाखे छ। प्रस्तुत भासमां जीव मनुष्यभवमां ज्यारथी गर्भमां आवे छे त्यारथी मृत्यु पामे त्यां सुधी ते केटली यातनाओ भोगवे छे, तेनुं तादृश वर्णन कर्यु छ। कृति परिचय प्रस्तुत कृतिनी भाषा मारुगुर्जर छ। पद्यबद्ध आ भासमां ३० गाथाओ आपेल छ । आ कृति अंतर्गत मनुष्यनुं गर्भथी मांडीने मृत्युपर्यंत तादृश चित्र दर्शावी जीवने वैराग्य उत्पन्न कराववानो कर्त्तानो हेतु छ । कर्ता प्रत्येक आत्माने संबोधीने कहे छे के - हे जीव ! तुं चेती जा ! पोतानी जात पर गर्व न कर...... प्रस्तुत भासमां करायेल गर्भावासना दुःखोनुं वर्णन हैयु द्रवी उठे तेवु छे । मातापिताना योगे जे शुक्रशोणितना योगथी कर्मवश जीवनी उत्पत्ति थई छे, एवा ते जीवने गर्भमां आवता ज केटलांय दुःखोनो सामनो करवो पड़े छे। जीव गर्भमां आवे त्यारे प्रथम सात दिवस प्रवाही स्वरूप होय छे अने पछीना सात दिवस परपोटा स्वरूप होय छ । एक मासे मांसनी पुणी जेवो आकार होय छे । बीजे मासे पेसी जेवो अने त्रीजे मासे घण (हथोडा) जेवा आकारनो थाय छे, चौथे महिने ते माताना अंगने मोटा बनावे छे, पांचवे महिने पग अने हाथनी आंगलीओ आकार पामे छे अने छ8 महीने वाळ, सातमे महिने ५०० पेसी, ७०० शिरानाड़ी अने ९०० धमनियोनो विकास थाय छे । ज्यारे आठमे For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 21 SHRUTSAGAR January-2020 महीने जीवने आठ करोड़ रुंवाडा, एम सर्वशरीर आठमे महिने पूरुं बने छे। अने नव महिना गर्भमां माताना सुखे सुखी अने दुःखे दुःखी थइने मलमूत्रनी वच्चे उधे मस्तके रही अति दुःखनी यातना भोगवे छे । केवी यातना जीव भोगवे छे? तेने वर्णवता कवि कहे छे के तेना आठ करोड़ रुंवाडामां तपावेली सोयने भोंके, अने जे दुःख थाय, तेना करता आठ गणु वधु दुःख जन्म समये थाय छ । आवा दुःखमां जीवने धर्म तो सूझे ज क्यांथी? जन्म्या पछी पण पोतानुं जीवन माताना दुधना आहारथी टकावे छे। प्रथम १० वर्ष रमवामां, पछीना १० वर्ष भणवामां, पछीना १० वर्ष स्त्री- मुख जोवामां आसक्त, ३० थी ४० वर्ष पैसा कमाववामां अने ४० थी ५० वर्ष दीकरा-दीकरीने परणाववामां जीवनो समय पसार थइ जाय छे । आटलो समय तो धर्म करवानो विचार पण ते करतो नथी, इट्ठा दसकामां धर्म करवानो विचार करे छ । पण हवे इन्द्रियो ज काम करती नथी। काने बराबर संभळातुं नथी, आंखें झामर आवी जाय छे, एटले देखातुं नथी, तो धर्म क्यांथी करे? ७० वर्षनो डोसो थई जाय छे । एनुं की, कोई करे नहीं अने शरीर रोगग्रस्त थई जाय छ। ८० वर्षनो थतां तो बेवड थईने चाले छे अने लोको तेना ऊपर सूग करे, खाटलामां सुवे तो ऊंघ पण आवे नहि, आखी रात खांस्या करे, दीकरानी वहु आदि कोइ तेने बोलावे पण नहि। एवा दुर्ध्यानमां मरीने परलोके सीधावे छे । तेना सगा वाहाला तेनो शोक करे, तेनो शुं अर्थ? जे जीव परमात्मपूजा अने साधु-साध्वी भगवंतोनी सेवा करे छे, ते ज जीव पोताना मनुष्यभवने सार्थक करी शके छे । बाकी सर्वजीवोना मनुष्यभव नकामा ज जाय छ । कर्ता परिचय __ प्रस्तुत कृतिना कर्ता श्री नन्नसूरि छ। आ कृतिमां कर्ताना नाम सिवाय बीजो कोई परिचय मळतो नथी पण आ नन्नसूरि उपकेशगच्छनी शाखा कोरंटगच्छना सर्वदेवसूरिना शिष्य होइशके तेवी संभावना लागे छे। जैन गूर्जर कविओमांजणाव्या प्रमाणे सं.१५४९नो प्रतिमा पर नो लेख नन्नसूरिनो मळे छे। आ उपरांत नन्नसूरिना सं.१५६९ना खंभातमां, सं.१५७३ मातरमांअनेसं.१६११ अनेसं. १६१२ ना प्रतिमा परनालेखो मळ्याछे । तेमुजब तेमना गुरु सर्वदेवसूरि छ । सर्वदेवसूरिना पण १४मी सदीना उत्तरार्ध अने १५मी सदीना पर्वार्धना लेखो मळे छे। जे परथी जणाय छे के आ कोरंटगच्छना सर्वदेवसरि नन्नसरिना संतानीय कक्कसूरिना पट्टधर हता। श्री नन्नसूरिनी अन्य कृतिओमां १० श्रावक सज्झाय, रचना सं.१५५३, २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, उपदेशमाला बालावबोध, विचार चोसठी, सं.१५५८नी रचना गजसुकमालमुनि सज्झाय, प्रभाती कडखो तथा विविधजिन For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 22 श्रुतसागर जनवरी-२०२० स्तवनोनो समावेश थाय छे। अनुमान करी शकाय के आ कृतिना कर्ता श्री नन्नसूरिजी १६मी सदीना होई शके । आ कृतिना संपादनमां मारा विद्यागुरु डॉ. शीतलबेन शाहनो सुंदर मार्गदर्शन अने सहयोग मळ्यो छे, जेना बदल हुं एमनी आभारी छु । प्रत परिचय प्रस्तुत कृतिनुं संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, कोबानी प्रत नं. ८०१०० ना आधारे करेल छ । आ प्रतमां ३ कृतिओ छे, जेमां प्रस्तुत कृति प्रथम क्रमांक पर छे । मध्यफुल्लिकायुक्त आ प्रतना अक्षर सुवाच्य अने सुंदर छे । कागज अने लेखनशैलीना आधारे अनुमानित लेखन वर्ष वि. १८मी नी संभावना छ । आर्या सं.चापलदेना भणवा माटे आ प्रत लखाई छ । हुंडीयुक्त आ प्रतनी लंबाई पहोळाई२५४११ छ । पत्रमा पंक्ति संख्या ९ अने प्रतिपंक्तिमा ३५ थी ३६ अक्षरो छे। २ पार्श्वरेखा काला रंगथी दोरेल छे। माणस भव उत्पत्ति भास ॥१॥चेति न०... आंचली ॥२॥चेति०... ॥३॥चे०... Gon चेति न चेति न प्राणीया, ताहरूं जोइ सरूपरे। रुप नवां दिनि दिनि घणां, लाई म करी विरूप रे उतपति जोइ न आपणी, मनि गरव आणि रे। गरव म बोलसि बापडा, तीणइ होसिइ हाणि रे मात पिता योगिइ मिलिउ, शुक्र शोणीय संवरे। तेहमांहि तूं ऊपतु(गुं) जो, ए करम प्रपंच रे कलल दिवस साते थयउ, साते बुदबुद जाणि रे। मास दिवस थउ मांसमइ, पूणी प्रमाणी रे बीजइ पेसी जेवडउ, त्रीजइ घणह' सरीखुरे। माया धरइ मनि डोहला', अति आणीय हरष रे मायनां अंग मोटां करइ, चउथइ मासि ते जीवइ रे। डावइ स्त्री जिमणइ नर, विंचि वसइ कली रे पांचमइ पांच अंकूरडा, पगना करइ दोइ रे। दोइ करइ करतावली, शिरनु एक होइ रे ॥४॥चे०... ॥५॥चे०... ॥६॥चे०... ॥७॥चे०... For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 23 January-2020 ॥८॥चे०... ॥९॥चे०... ॥१०॥चे०... ॥११॥चे०... ॥१२॥चे०... ॥१३॥चे०... SHRUTSAGAR पित्त अनइ शोणी धरइ, छट्ठइ मासि ते बाल रे। नरगि पडिउ लई जीवडा, तिहा थउ करी काल रे पांचसइ पेसी सातमइ, सातसइ शिरां नाडिरे। नवसइ निसि धमणी करइ, रोम अउठइ कोडिरे सर्व शरीर पूरुं अच्छइ, हुइ आठमइ मासि रे। उंथ(ध)इ माथइ अति दुखी, वसो तुं गर्भवासि रे अऊठ कोडि सई ताप वीसइ, र(?) वीधइ कोइ रे । आठ गुणुं दुख एहथी, तूहनइ तिहां होइ रे मा सुखिणी तुं ते सुखी, दुखीणी तु दुख रे। मा सूइ तु ते सूइ, इम सहइ असुख रे कोइ वइरागी चीतवई, जुजीणसिइ माइरे। तं काई रुडू कडूं, जीणइ ए दुख जाइ रे सत्पिउहुत्तिरि नइ दिन बिसइ, माइ ऊयरइ माहि रे। प्राहि तूं प्राणी वसिउ, मल मूत्र प्रवाही रे गरभ थकी दुख सुगणूं, जिणतां सयसहस रे। कोडिगणूं अथवा बहू, जीव तुं किम सहिसि रे जिण्या पछी जाणइ नहीं, तेह दुख विचार रे। माइ तणइ दूधिइ करी, तसु होइ आहार रे रामति२ अतिरंगि रमइ, दस वरस प्रमाण रे। बीजां दस विद्या भणइ, जु हुइ सुजाण रे त्रीजइ दसकइ तुं हुओ, स्त्री मुख जोतु रे। जिहां थिकी ऊपनउ, तेहनइ रंगि रातु रे चउथइ दसकइ धन भणी, धसमसऊ जाइ रे । धरम न जाणइ धुर लगइ, प्राहिं एह माहि रे पांचमइ दसकइ परवरिउ, हीडइ मदिहि मातु रे । बेटा बेटी वर-वहु, वीवाह करंतउरे ॥१४॥चे०... ॥१५॥चे०... ॥१६॥चे०... ॥१७॥चे०... ॥१८॥चे०... ॥१९॥चे०... ॥२०॥चे०... For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24 श्रुतसागर जनवरी-२०२० छठइ दसकइ दियामणा, इंद्री सवि थाइरे। धर्म करुं इम चीतवइ, पण ते न कराइरे ॥२१॥चे०. साठि पछी चक्षु झामली, काने सुरति न जाइ रे। चित्ति काई नवि सांभरइ, अति आरति थाइरे ॥२२॥चे०... सित्तिरि पूठिइ डोसलउ, जराइ पीडाइरे। कोइ कहिउं पुण नवि करइ, नाकिं श्लेष्म ३ न माइ रे ॥२३॥चे०... असीय पछी छ बेवड चलइ, सहुइ करइ सूग रे । लाल पडइ आंखि गलइ, वली व्यापइ रोप रे ॥२४॥०.. तिऊ पछी खाटइ पडइ, पणि नींद्र न आवइ रे । खीजइ नइ खुंटुं करइ, नवि कोई बोलावइ रे ॥२५॥चे०... वहू तणे बोले बलउ, मरीइ इम ध्याइ रे। दूख पाहिं अलखामणु, कहिनइ न सुहाइरे ॥२६॥चे०... आय पहुतइ जीवडउ, पुहचइ परलोकि रे। सगासणीजां तेहनां, वली बइसइ शोकि रे ॥२७॥चे०... आउखइ थोडइ घणइ, दस भागि प्रवाहइ रे। एह अवस्था ऊपजइ, निश्चइ न कहाइ रे ॥२८॥चे०... माणस ना भव नीगम्या५, इम वार अनंत रे। धरम न जाणो जीवडा, भवमाहिं भमंत रे ॥२९॥चे०... परमेश्वर पूजा करी, सेवी गुरु साहु रे। श्री नन्नसूरि गुरु इम भणइ, लीजइ भव लाह रे ॥३०॥चे०... ॥इति माणस भव उत्पत्ति भास समाप्तः॥ __ शब्दकोश १. प्रवाही, २. परपोटा, ३. हथोडा, ४. माता, ५. दोहला, ६. जमण, नपुंसक, ७. रक्त, ८. रात ?, ९. सोय, १०. जे कारणथी, ११. प्रायः, १२. क्रीडा, १३. कफ, १४. सगा स्नेहीओ, १५. गया. For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 25 SHRUTSAGAR January-2020 स्तुति-स्तोत्रादि-साहित्यमा क्रमिक परिवर्तन पुण्यविजयजी म.सा. परिवर्तनशील संसारमा एवी एक पण वस्तु नथी के जे दरेके-दरेक बाबतमां देश-काळ आदिना परिवर्तन साथे नवो अवतार धारण न करे। आ अटल नियमथी आपणुं स्तुति-स्तोत्रादि विषयक साहित्य पण वंचित नथी रही शक्यु, अर्थात जगतनी अनन्य विभूतिनुं पोतामां दर्शन करनार अने ते ज वस्तुनो बीजाने साक्षात्कार करावनार तीर्थंकर देव आदि जेवी महाविभूतिओने लगतुं स्तुति-स्तोत्रादि साहित्य उपर्युक्त शाश्वत नियमथी अस्पृष्ट नथी रही शक्युं, ए आपणे आपणा समक्ष विद्यमान विविध अने विपुल स्तुति-स्तोत्रादि-विषयक साहित्य- दिग्दर्शन करतां सहेजे जोई शकीए छीए। एक समय एवो हतो के ज्यारे, अत्यारे आपणी नजर सामे देवोपासनाने लगतुं जे चित्र विचित्र स्तुति-स्तोत्र-स्तवनादि-विषयक साहित्य विद्यमान छे ते लेश पण न हतुं; तेम छतां एक बीजा दर्शन, एक बीजा संप्रदाय अने एक बीजी प्रजा साथेना सहवासने कारणे जनसमाजनी अभिरुचिने ते ते तरफ ढळेली जोई धर्मधुरंधर जैनाचार्योए ए प्रकारना साहित्यना निर्माण तरफ पोतानी नजर दोडावी अने क्रमे-क्रमे ए जातना साहित्यनो सागर रेलावा लाग्या । स्तुति-स्तोत्रादि साहित्य- सर्जन अने तेमां क्रमिक परिवर्तन आजे आपणा समक्ष विद्यमान संगीतालापथी भरपूर स्तुति-स्तोत्र-स्तवनादिने लगता साहित्य राशिने जोई आपणने जरूर ए आशंका थशे के जे जमानामां आजना जेवू स्तुति-स्तोत्रादि साहित्य नहि होय ते जमानानी जनता आत्मदर्शन करनारकरावनार महाविभूतिओनी प्रार्थना कई रीते करती हशे? परंतु ते युगनी जनताना जीवन अने मानसनो विचार करतां एनो उत्तर सहेजे ज मळी रहे छे के ते युगनी स्तुति-उपासना-भक्ति ए मात्र अत्यारनी जेम काव्यमां-कवितामां के जिह्वामांवाणीमां उतारवारूप न हती; किन्तु ते स्तुति ए महापुरुषना चरितने अने तेमना पवित्र उपदेशने जीवनमां उतारवारूप हती। एटले ते जमानामां अत्यारनी जेम ढगलाबंध के चित्रविचित्र स्तुति-स्तोत्रादि साहित्यनी प्रजाने आवश्यकता नहोती जणाती। ए ज कारण हतुं के ते युगनी जनता माटे आचारांगसूत्र आदिमां आवती उपधानश्रुताध्ययन, वीरस्तुत्यध्ययन आदि जेवी विरल छतां विशद स्तुतिओ बस थती For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 26 श्रुतसागर जनवरी-२०२० हती, जेमां तीर्थंकरदेवना जीवंत अने भारोभार त्यागजीवन- सत्य स्वरूपमा वर्णन हतुं। आ स्तुतिओ जीवनना तलने स्पर्शनार तेम ज भाववाही होई ए द्वारा एकांत जीवनविकासनी इच्छुक ते युगनी जनता महाविभूतिओना पुनित पंथे विचरी जीवनने वास्तविक स्तुतिमय बनावती हती। ___ परंतु कुदरतना अटल नियमने आधीन जगत अने जनता क्यारे पण स्थिरस्थायी नथी रह्यां, नथी रहेतां अने रहेशे पण नहि । देशकाळना पलटावा साथे जनसाधारणनी अभिरुचि बदलाई अने स्तुति-साहित्यना नवीन सर्जननी आवश्यकता आगळ वधी। परिणामे जैनधर्मना प्राण समा गणाता आचार्यश्री सिद्धसेन दिवाकर अने तेमनी समकक्षामां ज कदम राखनार स्वामी श्री समंतभद्राचार्य जेवा धर्मधुरंधर आचार्योने स्तुति-साहित्यना नवसर्जननी आवश्यकता जणाई अने ए आचार्य युगले गंभीरातिगंभीर, तात्त्विक ज्ञानपूर्ण स्तुति-साहित्यनो झरो वहाव्यो, जेनाथी जैनदर्शन अने जैनसाहित्य आजे गौरववतुं छे।। ___ उपर्युक्त बे महापुरुषोना स्तुतिसाहित्यनी तुलनामां मूकी शकाय एवा स्तुतिसाहित्यनो उमेरो करनार पाछला समयमां कलिकालसर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचंद्र अने न्यायविशारद न्यायाचार्य महोपाध्याय श्री यशोविजयजी ए बे महापुरुषो खास ध्यान खेंचे छे, जेमणे गंभीर तत्वज्ञानथी भरपूर विपुल स्तुति-स्तोत्र, साहित्य सयुं छे। आश्चर्य अने दिलगीरीने विषय ए छे के उपर्युक्त महापुरुषनी गंभीर कृतिओ तरफ आपणुं लक्ष्य जरा सरखंय जतुं नथी। अस्तु, आचार्य श्री सिद्धसेननी द्वात्रिंशिकाओ, स्वामी श्री समंतभद्रनुं स्वयंभू स्तोत्र, आचार्य श्री हेमचंद्रनी अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका अने वीतरागस्तोत्र, न्यायाचार्य श्री यशोविजयोपाध्यायकृत वीरस्तुति, शंखेश्वर पार्श्वजिनस्तुति, प्रतिमा शतक, परमात्मस्वरूप पंचविंशतिका-आ बधी स्तुतिओनुं स्थान जैन साहित्यमां अति गौरवभर्यु छे, परंतु ए बधाने चर्चवानुं तेम ज तेनो परिचय आपवानुं आ स्थान नथी। (क्रमशः) ["श्री जैन धर्म प्रकाश, सुवर्ण महोत्सव विशेषांक, चैत्र, सं. १९९१] For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 27 SHRUTSAGAR January-2020 प्राचीन पाण्डुलिपियों की संरक्षण विधि राहुल आर. त्रिवेदी (गतांक से जारी) वर्षा ऋतु के समय नमी(Humidity) को नियंत्रित करने के लिए स्टोरेज स्थान को यथासंभव अच्छी तरह बंद रखने के अलावा उस स्थान पर 'सिलिका जेल (Celica gel)' का भी प्रयोग किया जाता है। जिसका उपयोग स्टोरेज क्षेत्र के अनुसार २५ ग्राम 1 Cubic meter के हिसाब से रखा जाता है। यदि नमी अधिक हो जाती है तो हस्तलिखित ग्रंथों के पन्ने एक दूसरे से चिपकने लगते हैं। साथ ही नमी में जीव-जंतुओं और फफूंद के पनपने की संभावना भी बढ़ जाती है। जो पाण्डुलिपियों के लिए बहुत नुकशानकारक सिद्ध होती है। अतः प्राकृतिक वातावरण को भी ध्यान में रखकर सुरक्षा करनी चाहिए। स्टोरेज क्षेत्र में प्रकाश की मात्रा-स्टोरेज के क्षेत्र में प्रकाश(Light) आवश्यक मात्रा में होनी चाहिए। प्रकाश सीधा पाण्डुलिपियों के ऊपर नहीं पड़ना चाहिए। स्टोरेज क्षेत्र में LED फिल्टर लाईट का उपयोग अधिक उपयुक्त है। पाण्डुलिपियों के लिए प्रकाशकीय मान 50 Lux होना चाहिए। यदि प्रकाशकीय मान अधिक हो जाता है तो पाण्डुलिपियाँ जर्जरित होने लगती हैं और बटकने योग्य हो जाती हैं। पाण्डुलिपियों में होनेवाले जीवों के प्रकार एवं अपघटन पाण्डुलिपियों की स्थिति समय के साथ-साथ खराब हो जाती है। आरम्भ में पाण्डुलिपि श्रेष्ठ और सुंदर होती है, परन्तु समय बीतने पर भौतिक, रासायनिक व जैवीय कारणों से उसके गुणों में अन्तर आ जाते हैं और वे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। पाण्डुलिपियों के क्षतिग्रस्त होने के अनेक कारण होते हैं, प्राकृतिक कारकों के अतिरिक्त, जलवायु, प्रकाश, फफूंद, कीड़े आदि तथा मानव के द्वारा उत्पन्न अनेकों कारक होते हैं, जो पाण्डुलिपियों को हानि पहुँचाते हैं। निरीक्षकों के अनुसार ग्रंथालयों में अनुचित भूमि पर पाण्डुलिपि एवं पुस्तकों को एक के ऊपर एक पड़ा हुआ देखा जा सकता है, जिनके ऊपर प्रतिदिन धूल जमती रहती है। पाण्डुलिपि की स्थिति खराब होने का एक आंतरिक घटक अम्लीयता(Acidity) की उपस्थिति भी है। For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 28 जनवरी-२०२० जैविकीय अपघटन पाण्डुलिपियों को उष्ण कटिबंधीय देशों में जैविकीय कारक अत्यधिक हानि पहुँचाते हैं। शीतोष्ण जलवायु वाले देशों में यह समस्या कम है, परन्तु यहाँ भी थोड़ी बहुत मात्रा में वे अवश्य उपस्थित रहते हैं। अतः प्रकृति व जैविकीय अभिकर्मकों के उन गुणों से परिचित होना आवश्यक है। सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण जैविकीय संरचनाएँ- फफूंद, शैवाल, जीवाणु, खमीर, कीड़े, कोक्रोच(तिलचट्टे), सिल्वर फिश, पुस्तक-कृमि, चूहे तथा इन सब में सबसे अधिक विनाशकारी दीमक होते हैं। (क) फफूंद___ फफूंद कागज के साथ-साथ सभी कार्बनिक पदार्थो के विनाश का मुख्य कारण है। क्योंकि कागज कमजोर और आर्द्रता सोखने वाला होता है, उस पर फफूंद का प्रभाव आसानी से होता है। फफूंद का विकास तब होता है जब उसकी कोशिका या जीवाणु को अंकुरित होने के लिए सही पदार्थ मिलता है। यह आर्द्र अवस्था में अंकुरित होना प्रारम्भ कर देते हैं। फफूंद के विकास के लिए सबसे अधिक अनुकूल वातावरणीय परिस्थितियाँ, 24°-30°C के बीच का तापमान, ६५ प्रतिशत आर्द्रता व कागज की अम्लीय स्थिति है। फफूंद की विभिन्न जातियाँ हैं, जो वातावरण की विभिन्न परिस्थितियों में विकसित होती हैं। उदाहरण के लिए एस्परजिलस व पेनीसिलियस की कछ जातियाँ १० प्रतिशत आर्द्रता में भी जीवित रह सकती हैं। इतना ही नहीं बल्कि यह कुछ ऐसे सूक्ष्म जीवों को भी सहायता प्रदान करती है, जिनमें ऐसे एन्जाइम उपस्थित होते हैं, जो कि सेल्यूलोज, स्टार्च, प्रोटीन व अन्य यौगिकों का अपघटन करते हैं। फफूंद के विकास के लिए कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सल्फर, पोटेशियम, मैगनीज़ व कैल्शियम की आवश्यकता होती है। वे सभी यौगिक जिनमें कार्बन की उपस्थिति होती है, फफूंद से प्रभावित होते हैं। ___ फफूंद का विकसित होना चिपकाने व सजाने वाले पदार्थों पर भी निर्भर करता है, जिनका कागज पर प्रयोग किया जाता है। यह देखा गया है कि, सामान्यतया ऐसे कागज जिनका Potential of Hydrogen (pH)(प्रतों में इसे एसिडीटी नापने की कागज की पट्टी से मापा जाता है।) मान 5.5-6.0 के बीच होता है, वे फफूंद के आक्रमण का सरलता से प्रतिरोध कर सकते हैं। For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR January-2020 (ख) शैवाल शैवाल कागज के अपघटन में अधिक सक्रिय नहीं होते हैं। हालाँकि इन्हें कई बार ऐसे स्थानों में पाया गया है, जहाँ अत्यधिक सूर्य-प्रकाश आता है। सामान्यतया ये इमारतों की ऊपरी परतों, पत्थरों आदि पर अधिकतर पाये जाते हैं, न कि कागज पर। (ग) सिल्वर फिश सिल्वरफिश, चांदी जैसी चमकीली व मछली जैसे रूप के कारण यह Silver fish के नाम से जानी जाती है। यह ग्रंथालयों में अवश्य पायी जाती है। ये बड़ी तेजी से विकसित होती हैं व अंधेरे स्थानों पर रहना अधिक पसन्द करती हैं। ये कीट गोंद आदि चिपकाने वाले पदार्थों को अत्यधिक पसन्द करती हैं। (घ) कोक्रोच (तिलचट्टे) ___कोक्रोच भी एक ऐसा साधारण कीट है, जो सामान्यतया संग्रहालयों व पुस्तकालयों में पाया जाता है। भूरे व काले रंग के ये कीट विभिन्न प्रकार के कागज, पुस्तक की जिल्द, चमड़ा, कपड़े व अन्य कार्बनिक पदार्थो की सामग्री को हानि पहुंचाते हैं। उनका मल, जो काले रंग का होता है, पुस्तकों व पाण्डुलिपियों पर जम जाता है व इनके रंग को परिवर्तित कर देता है। (ङ) पुस्तक-कृमि पुस्तक-कृमि, जैसा कि नाम से ही पता चलता है, कागज को खा जाते हैं व इसे पर्याप्त मात्रा में क्षतिग्रस्त कर देते हैं। ये सभी प्रकार के पदार्थों को खा जाते हैं व सेल्यूलोज़ को पचा लेते हैं। इनके अण्डे पुस्तकों की जिल्द पर या कागजों पर उपस्थित होते हैं। जब अण्डे फूटते हैं तो लाखों कीट पुस्तक को अपना भोजन बना लेते हैं व पूरी पाण्डुलिपि या पुस्तक में अनेकों छिद्र बना देते हैं। (च) दीमक दीमक, उष्ण कटिबंधीय व उप-उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले प्रदेशों में अधिक पाएजाते हैं ।येकिसीभीप्रकारकीलकड़ी केसामान,इमारतसम्बन्धीसामग्री,आलमारी, दरवाजों आदि को नष्ट कर सकते हैं। यदि पुस्तकें व पाण्डुलिपियों दीमक से प्रभावित हो जाती हैं तो बहुत शीघ्र नष्ट हो जाती हैं। यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए दीवारों पर मिट्टी से नलिका बनाते हैं। ये नलिकाएँ ही दीमक की उपस्थिति को दर्शाती हैं। ये ऐसे किसी भी प्रकार के पदार्थ पर आक्रमण करते हैं, जिसमें सेल्यूलोज उपस्थित होता है। For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 श्रुतसागर जनवरी-२०२० (छ) कुतरने वाले जीव-चूहे कुतरने वाले जन्तु पाण्डुलिपियों के बहुत बड़े शत्रु हैं। चूहे सभी प्रकार की पाण्डुलिपियों, पुस्तकों, चित्रों, कपड़ों व अन्य कार्बनिक पदार्थों के लिए सबसे बड़े शत्रु हैं। (ज) कागज पर भूरे रंग के धब्बे कागज पर भूरे रंग के धब्बों का पड़ना सामान्य बात है। संरक्षण साहित्य में इस प्रक्रिया को ‘फॉक्सिंग' कहते हैं। यह सामान्य धारणा है कि फॉक्सिंग धब्बे फफूंद के द्वारा उत्पन्न कार्बनिक अम्लों के प्रभाव से व कागज में उपस्थित लौह अशुद्धियों की रासायनिक सक्रियता के कारण होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि इन धब्बों के लिए अधिक मात्रा में नमी उपस्थित हो । कागज पर फॉक्सिंग धब्बों की असर उसमें उपस्थित अशुद्धियों की मात्रा पर निर्भर करती है। यह भी देखा गया है कि प्राचीन काल के अर्थात् १४वीं व १५वीं शताब्दी के कागज जिनमें लगभग शुद्ध सेल्यूलोज था, १८वी व १९वीं शताब्दी के कागजों से कम प्रभावित हुए। क्रमशः (अनुसंधान पृ. ३२ से) हरण नामक प्रकारवाली “प्रभावती हरण” कृति का संपादन किया गया है तथा ७. सद्धर्म प्ररूपक देव, जिननिर्दिष्ट धर्म परंपरा को पहुँचाने वाले गुरु तथा अहिंसाप्रधान कल्याणकारी धर्म इन तीन तत्त्वों पर श्रद्धा स्वरूप सम्यक्त्व दर्शाने वाली “सम्यक्त्व कुलक” कृति का अंत में संपादन किया गया है। इन ऐतिहासिक कृतियों में भिन्नभिन्न कर्ताओं द्वारा दान, धर्म, शील एवं सम्यक्त्व आदि विषयों को प्रभावक कथाओं तथा चरित्रों के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इन सातों कृतियों के पूर्व में भूमिकारूप कथासार, कृति, कर्ता एवं हस्तप्रत परिचय आदि बहुत ही सुंदर रूप से दिया गया है। जो वाचकों के लिए रसप्रद है। ___पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है। आवरण भी शीर्षक के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है। श्रीसंघ, विद्वद्वर्ग व जिज्ञासुओं को इस उत्तम प्रकाशन का लाभ मिले। भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं उपयोगी ग्रन्थों के प्रकाशन में हमारा किंचित् योगदान प्राप्त होता रहे, ऐसी जिनेश्वर भगवंतों के चरणों में प्रार्थना करते हैं। For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 31 January-2020 पुस्तक समीक्षा राहुल आर. त्रिवेदी पुस्तक नाम : रास पद्माकर भाग-४ संपादक : संपादक मंडल, आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा संशोधक : पं. गजेन्द्रभाई आर. शाह, पं. संजयकुमार झा संयोजक : राहुल आर. त्रिवेदी प्रकाशक : आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा प्रकाशन वर्ष : वि. सं. २०७५ मूल्य : २००/पृष्ठ : १४+१९४ भाषा : मारुगुर्जर, गुजराती विशेषता : जैन ऐतिहास कथा रासों का वर्णन. __ प्राचीन साहित्य पर संशोधन-संपादन की प्रवृत्ति पुनः जोर पकडती जा रही है। इस कार्य को कई विश्वविद्यालय, संशोधन संस्थाएँ, साधु-साध्वी भगवंत और संशोधक कर रहे हैं। अबतक अनेक दर्लभ कृतियों को समाज के समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया है। प्राचीन अमूल्य विरासतरूप हस्तप्रतों में से ऐसी अप्रकट कृतियों को प्रकाशित कर ज्ञानपिपासु विद्वद्जगत को तृप्त किया गया है। ___ साहित्य सर्जन के क्षेत्र में ऐसा ही एक प्रयास आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के द्वारा हो रहा है। इस संस्था से शायद ही कोई अपरिचित होगा। संस्था की प्रवृत्तियों की जानकारी एवं अपने शोधकार्य में गति व गुणवत्ता हेतु साहित्य क्षेत्र से जुड़े हुए विद्वद्वर्ग के लिए इस संस्था की मुलाकात अनिवार्य है। ___ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में नियुक्त अलग-अलग विषयों एवं भाषाओं के विशेषज्ञ पंडितों के द्वारा हस्तप्रत संपादन एवं सूचिकरण का महत्त्वपूर्ण कार्य किया जाता है। इन पंडितों के द्वारा हस्तप्रतों में स्थित अप्रकाशित विविध विषयक लघु कृतियों को “श्रुतसागर” नामक मासिक पत्रिका में प्रतिमास प्रकाशित किया जाता है। इसी उपक्रम में विशेष संशोधनात्मक अधिक परिमाणयुक्त ऐतिहासिक For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर जनवरी-२०२० रास, सज्झाय आदि मारुगुर्जर भाषा में रचित कृतियों को “रास पद्माकर” नामक पुस्तक श्रेणी में प्रकाशित किया जाता है। इस रास पद्माकर के चार भाग प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें प्रथम भाग के अंतर्गत रास प्रकार की कृतियों का चयन कर ई.स. २०१२में प्रकाशित किया गया। दूसरे भाग के अंतर्गत चैत्यपरिपाटी विषयक और महापुरुषों की परिचयात्मक रचनाओं को संकलन कर ई.स. २०१३ में प्रकाशित किया गया। तीसरे भाग के अंतर्गत स्तवन व रास प्रकार की कृतियों का चयन कर ई.स. २०१४ में प्रकाशित किया गया। और हाल ही में दिनांक-०८-०९-२०१९ को इसका चौथा भाग प्रकाशित किया गया है। प्रस्तुत भाग के प्रारंभ में संपादकीय में पुस्तक के अंतर्गत संकलित कृतियों की विशेषताओं तथा पंडितों के श्रम का उल्लेख किया गया है। प्रारंभिक भूमिका के अन्त में संस्था का विस्तृत परिचय भी दिया गया है। तत्पश्चात् समाविष्ट रास कृतियों को प्रकाशित किया गया है। प्राचीन हस्तप्रतों की लिपि तथा भाषा के अवरोधों को दूर कर अर्वाचीन लिपि में लिप्यन्तर कर यथासम्भव पाठशुद्धि, कठिन शब्दों के अर्थ तथा पाठभेदों के साथ ७ कृतियों को प्रकाशित किया गया है। जो इस प्रकार है १. धर्म के चार प्रकारो में सर्वप्रथम दान धर्म है और उसकी महत्ता दर्शाने वाली “दानविषये चंपक श्रेष्ठी रास” प्रथम स्थान पर है।, २. धर्म के प्रकारो में द्वितीय क्रम पर शील है। जो इस लोक एवं परलोक में जीवन को सद्गति, सद्बुद्धि तथा दिव्यशक्ति देनेवाला है। उसके साक्षात् प्रभाव को प्रस्तुत करनेवाली “शीलविषये श्रीसुदर्शनश्रेष्ठी रास” दूसरे स्थान पर है।, ३. धर्माराधना में पर्वतिथियों का अधिक महत्त्व होता है। उसके प्रति आराधक की निष्ठा होनी चाहिए इसी के उदाहरण स्वरूप “पर्वतिथिमाहात्म्ये सूर्ययश राजर्षि रास” तृतीय स्थान पर संपादन किया है।, ४. पाप के प्रवाह को रोकने और सुख की दिशा में ले जानेवाले प्रत्याख्यान का फल तथा अच्छे बुरे कर्मो के फल को दर्शाने वाला “प्रत्याख्यानविषये दामन्नक रास” चौथे स्थान पर है।, ५. शीलरक्षा के स्वरूप को प्रस्तुत करनेवाला कृति “शीलविषये द्रौपदी रास" का पाँचवें स्थान पर संपादन किया गया है।, ६. श्री पार्श्वनाथ भगवान और उनकी पत्नी प्रभावती की उपन्यास समान (लौकिक प्रसिद्ध कृति 'ओखा हरण' आदि समान) __ (अनुसंधान पृ. ३० पर) For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 33 January-2020 समाचारसार जिनशासन के महान प्रभावक, राष्ट्रसन्त श्रद्धेय गुरुदेव पूज्य आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा का सेटेलाईट-तुलसी जैनसंघ में पावन पदार्पण पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा व पूज्य आचार्यदेव श्री अजयसागरसूरिजी म. सा. आदि श्रमण-श्रमणी भगवन्त दि.०३-०१-२०२० को प्रातः ९:३० बजे सकल श्रीसंघ के हितचिन्तक परम पूज्य तपागच्छाधिपति आचार्यदेव श्री मनोहरकीर्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा. को वन्दनार्थ आयोजननगर, वासणा पधारे थे। वहाँ पर दोनों पूज्यवों ने शासन व तीर्थों के अनेक कार्यों के सम्बन्ध में विचार विमर्श किया। वहाँ से प्रातः ११:३० बजे तुलसी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनसंघ में बैण्ड-बाजे के साथ राष्ट्रसन्त पूज्यश्री का भव्य प्रवेश हुआ। श्रीसंघ के उपाश्रय में मांगलिक एवं हृदयस्पर्शी प्रवचन सुनकर उपस्थित श्रद्धालु मन्त्रमुग्ध हो गए तथा श्रीसंघ के द्वारा पूज्यश्री का गुरुपूजन किया गया व आगामी चातुर्मास हेतु श्रीसंघ के द्वारा विनंती भी की गई। दि. ०४-०१-२०२० प्रातः ७:२० बजे पूज्य राष्ट्रसन्तश्री ने तुलसी जैनसंघ से विहार कर सुश्रावक श्री चन्द्रकान्तभाई वाडीलाल संघवी परिवार के गृहांगण में पधारे। वहाँ पूज्यश्री का पावन पगलिया व मंगल प्रवचन हुआ तथा उपस्थित जनसमुदाय को पूज्यश्री ने अपने आशीर्वाद प्रदान किए। तत्पश्चात् संघवी परिवार द्वारा गुरुपूजन व संघपूजन किया गया। इस अवसर पर संघवी परिवार के मुमुक्षुरत्न का सम्मान भी किया गया। इस उपलक्ष में पधारे हुए सभी श्रद्धालुओं की साधर्मिक भक्ति (नवकारशी) रखी गई थी। प्रातः ११:३०बजे वहाँ से विहार करके सोमेश्वर जैन उपाश्रय के समीप एडवोकेट श्री निमीषभाई कापडिया के गृहांगण में पधारे । वहाँ उपस्थित परिवार व श्रद्धालुओं ने पूज्यश्री द्वारा हितशिक्षा का लाभ प्राप्त किया। संघवी परिवार के एडवोकेट श्री नीरवभाई संघवी एवं कापडिया परिवार के एडवोकेट श्री निमिषभाई अपने अन्य सहयोगियों के साथ श्री शतुंजय गिरिराज की For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 34 श्रुतसागर जनवरी-२०२० रक्षा का सुन्दर कार्य कर रहे हैं। उपरान्त श्री निमिषभाई लम्बे समय से जीवदया के क्षेत्र में कानूनी तरीके से बड़ा ही प्रभावी कार्य कर रहे हैं। इस कार्यक्रम के दौरान इन दोनों एडवोकेट संघसेवकों के कार्य का परिचय पाकर अनेक श्रद्धालुओं के हृदय में प्रेरणादीप प्रगट हुए। पूज्य राष्ट्रसन्तश्री ने भी इनके कार्यों एवं उपलब्धियों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस अवसर पर शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी के ट्रस्टी श्री श्रीपालभाई शाह व पेढी के वकील श्री अशोक जैन तथा शळजयतीर्थ की सुरक्षा से जुड़े हुए अनेक वकील विशेष रूप से उपस्थित रहे और पूज्यश्री का आशीर्वाद प्राप्त किया। * . * राष्ट्रसन्त पूज्यश्री का आगामी कार्यक्रम दि. ०१-०२-२०२० शनिवार | दि. ०२-०२-२०२० रविवार दि. ०३-०२-२०२० सोमवार से ७-२-२०२० शुक्रवार दि. १०-०२-२०२० सोमवार से १५-२-२०२० शनिवार | डांगरवा श्रीसंघ में भव्य प्रवेश, प्रवचन व स्वामिवात्सल्य | जोरणंग श्रीसंघ में चैत्य परिपाटी के साथ भव्य प्रवेश / प्रवचन / पूजन व स्वामिवात्सल्य | कैयल श्रीसंघ में शताब्दीपर्व के उपलक्ष | में पंचदिवससीय ध्वजारोहण महोत्सव पारसमणि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ में अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव. (स्थल- पारसमणी सोसायटी, रन्नापार्क, घटलोडिया, अहमदाबाद) श्री सीमन्धरस्वामी तीर्थ महेसाणा व अमीकुंज श्रीसंघ में प्रतिष्ठा महोत्सव. दि. २०-०२-२०२० गुरुवार से २६-२-२०२० बुधवार For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Manavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailascagarsuri Gyanmandir GODDESS DIGIGAR राष्ट्रसंत पूज्यश्री का पावन पदार्पण For Private and Personal use only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Registered Under RNI Registration No. GUJMUL/2014/66126 SHRUTSAGAR (MONTHLY). Published on 15th of every month and Permitted to Post at Gift City SO, and on 20th date | of every month under Postal Regd. No. G-GNR-334 issued by SSP GNR valid up to 31/12/2021. (Vo समrawatesकयनिग्रल अमBARRAORANSTARMAN RABारमाय मामिलamastaजयामायामामmaaaaa तयार बारम/वाmausiनर्मिकारणंमकारतिराम SAMERIODushwan ailaअवता रउन्नाव बागमशरूयातितासिसवायसि फरकावामण ज्वगावकमंतिपर्वसूलादावादगीमाइसगाmarnatan गिरवाससंडा 'नार्दतातवियागत ज्यायोजकड़ित मामालिंगई पटनादिरूकामिल स्करूरकका FAMRADHEIRAHETRINARIYAREEमरीश्मन्नवणेदानाTERNATA अना Somemands हनयामा-SERIEND कपाmayaपग करवाया रमन सिम निरमुकाबनस्व गुरुम सेयरुको पायके पक्ष जिवाब PRASAnmरवना समयमाMASTERS N D उम्मीदवावमा यावयमRAमरायसि महत्मामानी मनिलायमविल्यमानी मरजानपत्राममिनिसमा Jawanाजिम्मghar wlpeamya BBC एखादिसा amaaातवसात मात्र जन VERMA मिकामगिरीमुक्षा मुन्यसनामधुनाको मानलम 3 प देशशरमाचावानुस्मपतुम? पामावदामा बोकापायाचा. //HIMo umiian नमहोश मुखमहीपुरवसा युना नयोग दिवसरबह रिवीमायामनारगरपोजानिये। होताना दिया था मासयजमान यापना पेलवाया नयनिरिसमा बलो कामका कामायनी जनताले शालिदानम्ध्यावये गायत EPISODanga n esed नव हिनामारलीमनाविका नामजीवेनेजमिनकरोजन MARA wanneMRAPRINTRESTHA मायलिहिमवारमादिना वना-यावभिनानाध्यागाविस Jaमनमामि 50 सेनिनिविगायती जमियममनावपले नियमन भारतलामालामासंमायायनानमग या निधनमवसादसिमिधामधन प्राप्तिामा गाजवताना गय हिमसंख्य वन निवाममावायदे हामिलामीमाविमाम्प रस्वतियार हरिदारोविराज्पत र नव वन मेल पर तय कसायन के मनुयारिव्यवहारोधिनापशु वियय सचिवागावासाचलमलमा रनधिमका कारयनिर्वाश्रीयुतमा मनमानवाश्रीभारतीता विधारप मुनीमही रकमलालयबहारी निवानि कर्मालयनसीनवजापेश्यानमाह काकाविसलमय विसथायण याबाता समयको मुहीमतिसाधनयवसाभिकाजहानायलयदा Aरिबानमा तवा निकायवाणियापम्यायाम्पकताविरुवामानियमानोन जोधमकिलाश्ययार्थशाधनमकरस्यायाम गणमानमानाचार्य-समिक्स लीलानावर योग्य संरक्षण के अभाव में जीर्णप्राय श्रुत विरासत. BOOK-POST/PRINTED MATTER प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा जि. गांधीनगर 382007 फोन नं. (079) 23276204,205,252 फेक्स (079) 23276249 WebW w .Hobatirth.org email: gyanmanding atirth.org Printed and Published by : HIREN KISHORBHAI DOSHI, on behalf of SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.& Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. And Printed at : NAVPRABHAT PRINTING PRESS, 9, Punaji Industrial Estate, Dhobighat, Dudheshwar, Ahmedabad-380004 and Published at : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.& Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. Editor : HIREN KISHORBHAI DOSHI 36 For Private and Personal Use Only