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SHRUTSAGAR
January-2020 प्राचीन पाण्डुलिपियों की संरक्षण विधि
राहुल आर. त्रिवेदी (गतांक से जारी)
वर्षा ऋतु के समय नमी(Humidity) को नियंत्रित करने के लिए स्टोरेज स्थान को यथासंभव अच्छी तरह बंद रखने के अलावा उस स्थान पर 'सिलिका जेल (Celica gel)' का भी प्रयोग किया जाता है। जिसका उपयोग स्टोरेज क्षेत्र के अनुसार २५ ग्राम 1 Cubic meter के हिसाब से रखा जाता है। यदि नमी अधिक हो जाती है तो हस्तलिखित ग्रंथों के पन्ने एक दूसरे से चिपकने लगते हैं। साथ ही नमी में जीव-जंतुओं और फफूंद के पनपने की संभावना भी बढ़ जाती है। जो पाण्डुलिपियों के लिए बहुत नुकशानकारक सिद्ध होती है। अतः प्राकृतिक वातावरण को भी ध्यान में रखकर सुरक्षा करनी चाहिए।
स्टोरेज क्षेत्र में प्रकाश की मात्रा-स्टोरेज के क्षेत्र में प्रकाश(Light) आवश्यक मात्रा में होनी चाहिए। प्रकाश सीधा पाण्डुलिपियों के ऊपर नहीं पड़ना चाहिए। स्टोरेज क्षेत्र में LED फिल्टर लाईट का उपयोग अधिक उपयुक्त है।
पाण्डुलिपियों के लिए प्रकाशकीय मान 50 Lux होना चाहिए। यदि प्रकाशकीय मान अधिक हो जाता है तो पाण्डुलिपियाँ जर्जरित होने लगती हैं और बटकने योग्य हो जाती हैं। पाण्डुलिपियों में होनेवाले जीवों के प्रकार एवं अपघटन
पाण्डुलिपियों की स्थिति समय के साथ-साथ खराब हो जाती है। आरम्भ में पाण्डुलिपि श्रेष्ठ और सुंदर होती है, परन्तु समय बीतने पर भौतिक, रासायनिक व जैवीय कारणों से उसके गुणों में अन्तर आ जाते हैं और वे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।
पाण्डुलिपियों के क्षतिग्रस्त होने के अनेक कारण होते हैं, प्राकृतिक कारकों के अतिरिक्त, जलवायु, प्रकाश, फफूंद, कीड़े आदि तथा मानव के द्वारा उत्पन्न अनेकों कारक होते हैं, जो पाण्डुलिपियों को हानि पहुँचाते हैं। निरीक्षकों के अनुसार ग्रंथालयों में अनुचित भूमि पर पाण्डुलिपि एवं पुस्तकों को एक के ऊपर एक पड़ा हुआ देखा जा सकता है, जिनके ऊपर प्रतिदिन धूल जमती रहती है। पाण्डुलिपि की स्थिति खराब होने का एक आंतरिक घटक अम्लीयता(Acidity) की उपस्थिति भी है।
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