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January-2020
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SHRUTSAGAR पित्त अनइ शोणी धरइ, छट्ठइ मासि ते बाल रे। नरगि पडिउ लई जीवडा, तिहा थउ करी काल रे पांचसइ पेसी सातमइ, सातसइ शिरां नाडिरे। नवसइ निसि धमणी करइ, रोम अउठइ कोडिरे सर्व शरीर पूरुं अच्छइ, हुइ आठमइ मासि रे। उंथ(ध)इ माथइ अति दुखी, वसो तुं गर्भवासि रे अऊठ कोडि सई ताप वीसइ, र(?) वीधइ कोइ रे । आठ गुणुं दुख एहथी, तूहनइ तिहां होइ रे मा सुखिणी तुं ते सुखी, दुखीणी तु दुख रे। मा सूइ तु ते सूइ, इम सहइ असुख रे कोइ वइरागी चीतवई, जुजीणसिइ माइरे। तं काई रुडू कडूं, जीणइ ए दुख जाइ रे सत्पिउहुत्तिरि नइ दिन बिसइ, माइ ऊयरइ माहि रे। प्राहि तूं प्राणी वसिउ, मल मूत्र प्रवाही रे गरभ थकी दुख सुगणूं, जिणतां सयसहस रे। कोडिगणूं अथवा बहू, जीव तुं किम सहिसि रे जिण्या पछी जाणइ नहीं, तेह दुख विचार रे। माइ तणइ दूधिइ करी, तसु होइ आहार रे रामति२ अतिरंगि रमइ, दस वरस प्रमाण रे। बीजां दस विद्या भणइ, जु हुइ सुजाण रे त्रीजइ दसकइ तुं हुओ, स्त्री मुख जोतु रे। जिहां थिकी ऊपनउ, तेहनइ रंगि रातु रे चउथइ दसकइ धन भणी, धसमसऊ जाइ रे । धरम न जाणइ धुर लगइ, प्राहिं एह माहि रे पांचमइ दसकइ परवरिउ, हीडइ मदिहि मातु रे । बेटा बेटी वर-वहु, वीवाह करंतउरे
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॥१८॥चे०...
॥१९॥चे०...
॥२०॥चे०...
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