________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर
जनवरी-२०२० रास, सज्झाय आदि मारुगुर्जर भाषा में रचित कृतियों को “रास पद्माकर” नामक पुस्तक श्रेणी में प्रकाशित किया जाता है। इस रास पद्माकर के चार भाग प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें प्रथम भाग के अंतर्गत रास प्रकार की कृतियों का चयन कर ई.स. २०१२में प्रकाशित किया गया। दूसरे भाग के अंतर्गत चैत्यपरिपाटी विषयक और महापुरुषों की परिचयात्मक रचनाओं को संकलन कर ई.स. २०१३ में प्रकाशित किया गया। तीसरे भाग के अंतर्गत स्तवन व रास प्रकार की कृतियों का चयन कर ई.स. २०१४ में प्रकाशित किया गया। और हाल ही में दिनांक-०८-०९-२०१९ को इसका चौथा भाग प्रकाशित किया गया है।
प्रस्तुत भाग के प्रारंभ में संपादकीय में पुस्तक के अंतर्गत संकलित कृतियों की विशेषताओं तथा पंडितों के श्रम का उल्लेख किया गया है। प्रारंभिक भूमिका के अन्त में संस्था का विस्तृत परिचय भी दिया गया है। तत्पश्चात् समाविष्ट रास कृतियों को प्रकाशित किया गया है।
प्राचीन हस्तप्रतों की लिपि तथा भाषा के अवरोधों को दूर कर अर्वाचीन लिपि में लिप्यन्तर कर यथासम्भव पाठशुद्धि, कठिन शब्दों के अर्थ तथा पाठभेदों के साथ ७ कृतियों को प्रकाशित किया गया है। जो इस प्रकार है
१. धर्म के चार प्रकारो में सर्वप्रथम दान धर्म है और उसकी महत्ता दर्शाने वाली “दानविषये चंपक श्रेष्ठी रास” प्रथम स्थान पर है।, २. धर्म के प्रकारो में द्वितीय क्रम पर शील है। जो इस लोक एवं परलोक में जीवन को सद्गति, सद्बुद्धि तथा दिव्यशक्ति देनेवाला है। उसके साक्षात् प्रभाव को प्रस्तुत करनेवाली “शीलविषये श्रीसुदर्शनश्रेष्ठी रास” दूसरे स्थान पर है।, ३. धर्माराधना में पर्वतिथियों का अधिक महत्त्व होता है। उसके प्रति आराधक की निष्ठा होनी चाहिए इसी के उदाहरण स्वरूप “पर्वतिथिमाहात्म्ये सूर्ययश राजर्षि रास” तृतीय स्थान पर संपादन किया है।, ४. पाप के प्रवाह को रोकने और सुख की दिशा में ले जानेवाले प्रत्याख्यान का फल तथा अच्छे बुरे कर्मो के फल को दर्शाने वाला “प्रत्याख्यानविषये दामन्नक रास” चौथे स्थान पर है।, ५. शीलरक्षा के स्वरूप को प्रस्तुत करनेवाला कृति “शीलविषये द्रौपदी रास" का पाँचवें स्थान पर संपादन किया गया है।, ६. श्री पार्श्वनाथ भगवान और उनकी पत्नी प्रभावती की उपन्यास समान (लौकिक प्रसिद्ध कृति 'ओखा हरण' आदि समान)
__ (अनुसंधान पृ. ३० पर)
For Private and Personal Use Only