Book Title: Shrutsagar 2020 01 Volume 06 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 22 श्रुतसागर जनवरी-२०२० स्तवनोनो समावेश थाय छे। अनुमान करी शकाय के आ कृतिना कर्ता श्री नन्नसूरिजी १६मी सदीना होई शके । आ कृतिना संपादनमां मारा विद्यागुरु डॉ. शीतलबेन शाहनो सुंदर मार्गदर्शन अने सहयोग मळ्यो छे, जेना बदल हुं एमनी आभारी छु । प्रत परिचय प्रस्तुत कृतिनुं संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, कोबानी प्रत नं. ८०१०० ना आधारे करेल छ । आ प्रतमां ३ कृतिओ छे, जेमां प्रस्तुत कृति प्रथम क्रमांक पर छे । मध्यफुल्लिकायुक्त आ प्रतना अक्षर सुवाच्य अने सुंदर छे । कागज अने लेखनशैलीना आधारे अनुमानित लेखन वर्ष वि. १८मी नी संभावना छ । आर्या सं.चापलदेना भणवा माटे आ प्रत लखाई छ । हुंडीयुक्त आ प्रतनी लंबाई पहोळाई२५४११ छ । पत्रमा पंक्ति संख्या ९ अने प्रतिपंक्तिमा ३५ थी ३६ अक्षरो छे। २ पार्श्वरेखा काला रंगथी दोरेल छे। माणस भव उत्पत्ति भास ॥१॥चेति न०... आंचली ॥२॥चेति०... ॥३॥चे०... Gon चेति न चेति न प्राणीया, ताहरूं जोइ सरूपरे। रुप नवां दिनि दिनि घणां, लाई म करी विरूप रे उतपति जोइ न आपणी, मनि गरव आणि रे। गरव म बोलसि बापडा, तीणइ होसिइ हाणि रे मात पिता योगिइ मिलिउ, शुक्र शोणीय संवरे। तेहमांहि तूं ऊपतु(गुं) जो, ए करम प्रपंच रे कलल दिवस साते थयउ, साते बुदबुद जाणि रे। मास दिवस थउ मांसमइ, पूणी प्रमाणी रे बीजइ पेसी जेवडउ, त्रीजइ घणह' सरीखुरे। माया धरइ मनि डोहला', अति आणीय हरष रे मायनां अंग मोटां करइ, चउथइ मासि ते जीवइ रे। डावइ स्त्री जिमणइ नर, विंचि वसइ कली रे पांचमइ पांच अंकूरडा, पगना करइ दोइ रे। दोइ करइ करतावली, शिरनु एक होइ रे ॥४॥चे०... ॥५॥चे०... ॥६॥चे०... ॥७॥चे०... For Private and Personal Use Only

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