Book Title: Shrutsagar 2020 01 Volume 06 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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January-2020
॥१८॥
॥१९॥
॥२०॥
SHRUTSAGAR
___13 तुझ महिमाइं लोक सयल आणंदीइ रे, तुझ नामइं पणि सघलां पाप निकंदीइ५ रे । तीन भुवन तस वंदइ जेण६ तूं वंदीइ रे, तूं तूठउ निज पदवी सेवकनिं दीइ रे देव दयापर समर्यो गोविंदइं यदा रे, ततखिणि तई तस दीधी जय-लखिमी तदा रे। भद्रबाहुसामि(मिइं) पणि तूं समर्यो मुदा रे, तव तई मारि निवारी दीधी संपदा रे सिद्धसेनसूरिंदई तूं संभारिउ रे, तव तइं दरिसन देई विक्रम भूप तारिउ रे* । अभयदेव गुरु केरउ रोग निवारिउ रे, एणी परि सेवक लोक घणुं तई तारिउ रे
॥ढाल ॥राग-केदारउ॥ एहवा तुझ गुण मइं सुण्या, गुरु तणे वयणे उल्लासिं रे। हरिहरादिक तव छंडिआ, आविउं हूं तुझ पासिं रे जय जय पास चिंतामणी, चिंतित-पूरण देव रे। कल्पवेली सही मइं लही, पामीअजु तुझ सेवरे जेहवो दिनकर कमलनइं, जेहवो चंद चकोर रे। जेहवो मालती मधुकरा, जेहवो मेहनइं मोर रे तिहुअण-वालिंभ तुज्झस्युं, तेहवो मुझ हुउ नेह रे। अविहड प्रेम प्रभु राखयो, दाखयो मां हवइ छेहरे नीर जिम नीरनिधि केरडूं, दिनि दिनि वाधतूं जोय रे। उत्तम जन तणी प्रीतडी, तिम प्रभु वाधती होय रे जो हि हूं मूढमति अतिघणूं, गुण पणि नहीं मुझ एक रे। तो हि हूं तारवो तइं१९ प्रभू, सेवक भणीअ सुविवेक रे
॥२१॥
॥२२॥जय...
।।२३।।जय...
॥२४॥जय...
॥२५॥जय..
॥२६॥जय..
* पाठांतर- ईसर केरु नाद के तव ऊतारिउ रे.
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