Book Title: Shrutsagar 2020 01 Volume 06 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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जनवरी-२०२०
॥११॥
॥१२॥
॥१३॥
श्रुतसागर
___12 तुझ सेवक निसि दीस नागपति भाविउ रे, पुरुषादानी देव तूं हि कहाविउरे राज्यरिद्धि भंडार अंतेउर परिहरि रे, संयम-रमणी दुख-नीगमणी' तइं वरी रे। मोट(ह?) कटकस्युं झूझ्यो तूं धीरज धरी ए, मयण महाभड जीत्यो तव हठ आदरी रे रोस महा भड लीलाइं करी तइं दम्यो रे, कमठासुरिं उपसर्ग कर्यो ते तई खम्यो रे। तव आवी धरणिंदो तुझ चरणे नम्यो रे, बीहनो तस वयणेहिं कमठ पणि तुझ नम्यो रे राग रंक परि रोल्यो वइरागई करी रे, मानिं दीधी पूंठि वेला जोइ आकरी रे। माया वइरिणि(णी?) नाठी जिम कूटी खरी रे, लोभई पणि पग कीधा नवि जोयुं फरी रे मोह तणूं बल भाज्यूं तई सघलूं दली१२ रे, मोह महीपति नाठु तव मनि खलभली रे । नाणावरणी आदिक मित्र तेहना मिली रे, त्रिणि ततखिण नाठा बीहकइ झलफ(झ?)ली१३ रे तव हरखइं केवल लखिमीइं तूं वर्युरे, च्यार निकायने देवे प्रभु तूं पर(रि)वर्यु रे । देवदुंदुभी नादई तव तिहुअण भर्युरे, धर्ध(म) कहीनंइ लोक सकल तई उद्धर्यु रे कर्म-मइल सवि टाली तूं निरमल थयो रे, निराकार निकलंक तूं मुगतिं गयु(यो) रे। तूं हि निरंजन देव के जगरंजन कह्यो रे, वीतराग परमेसर तूं प्रभु मइं लह्यो रे
।१४॥
॥१५॥
॥१६॥
॥१७॥
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