Book Title: Shrutsagar 2020 01 Volume 06 Issue 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR January-2020 पार्श्वनाथ प्रभुना बे अप्रगट स्तवनो ____ गणि सुयशचंद्रविजयजी आपणे त्यां सौ प्रथम नमुत्थुणं स्तोत्रथी प्रारंभीने प्राकृत भाषामां अने त्यार पछी अनुक्रमे अपभ्रंश, संस्कृत भाषामां तीर्थंकरोने आश्रयीने स्तोत्रो बनावाया। काळक्रमे ते स्तोत्रोमां तीर्थंकरोना माहात्म्यने वधारती रचनाओए पण स्थान लीधुं । जेना फळस्वरूपे विविध तीर्थोनु तथा प्रभुनी कल्याणक भूमिओनुं स्तोत्रादि विषयक साहित्य आपणने मळ्यु । आम भक्तिपरक रचातुं साहित्य फक्त भक्तिपरक न रहेता इतिहासपरक पण बन्यु। वळी आ ज परिपाटी गुर्जरादि प्रादेशिक भाषा साहित्यमां पण रही। जो के अहीं जे-ते प्रादेशिक भाषा बोलनारो, समजनारो वर्ग बहोळो होई संस्कृत-प्राकृतादि भाषाना काव्यो करता गुर्जरादि भाषा काव्योनो प्रचार-प्रसार खूब वध्यो । ते भाषाओमां रचनाओ पण खूब थई अने वंचाई पण खूब । आपणे आवा स्तोत्रोनु सामान्यथी विषय प्रमाणे वर्गीकरण करीए तो ते मुख्यपणे ३ प्रकारे विभाजित करी शकाय (१) गुणस्तुतिपरक काव्यो- जेमां प्रभुना गुणवैभवस्वरूप वर्णवायु होय ते, (२) तत्त्वपरक काव्यो- जेमां प्रभुना जीवननी कोई नोंध जेम के माता-पिता-ग्रामादिना उल्लेख होय के कर्मग्रंथादिना पदार्थोने वर्णवती रचना होय ते, (३) आत्मनिंदापरक काव्यो- जेमां पोते आचरेला प्रमादोनु-दोषोनु-पापोर्नु आलोचन करवा रूप प्रभुस्तवन होय ते। प्रायः आ वर्गीकरणमां तीर्थंकरादि संबंधि दरेक स्तोत्रने वहेंची शकाय। जेम के ३४ अतिशय वर्णन स्वरूप, ८ प्रतिहार्यनी गुंथणी स्वरूप रचाता स्तवनादि पण आमां ज (बीजा प्रकारमा) विभाजित करी शकाय, तो मंत्रगर्भित(देवदेवीना) स्तोत्रोने पण आमां (बीजा प्रकारमा) विभाजित करी शकाय। । प्रस्तुत अंकमां प्रकाशित बन्ने रचनाओ पण आवी ज भक्तिपरक रचनाओ छ। तेमां पहेली कृति बहुलतया गुणस्तवनापरक छे, ज्यारे बीजी कृति आत्मनिंदापरक छ। पहेली कृति कपडवंजना चिंतामणि पार्श्वनाथ प्रभुने उद्देशीने रचाई छे तो बीजी कृति झोटाणामंडण अजितनाथ-पार्श्वनाथ प्रभु पासे गवाई छ । भाषा तो बन्नेनी मारुगुर्जर छे, परंतु पहेली कृति करता बीजी कृतिना शब्दो थोडा वधु क्लिष्ट न समजाय तेवा छे । खास तो बेमांथी एकपण कृतिमां कृति रचना वर्ष नथी। परंतु ग्रंथकारनी कृति रचना प्रशस्ति परथी पहेली कृतिनी रचना १७मी सदीना उत्तरार्धमां ज्यारे बीजी कृतिनी रचना १८मी सदीना पूर्वार्धमा होवानुं अनुमान करी शकाय। जो के कर्तानी अन्य कोई रचना मळेथी ते अंगे वधु विचारी शकाय। For Private and Personal Use Only

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