Book Title: Shruta Skandha Author(s): Bramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur View full book textPage 5
________________ ग्रंथकार ने गाथा संख्या 79 में अंगांशधर ज्ञान को धारण करने वाले अहंद नाम के मुनि हुए। अर्हमुनि के पश्चात् माघनन्दि का उल्लेख न करते हुए, आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) का उल्लेख किया है और आचार्य भद्रबाहू के पश्चात् धरसेनाचार्य का उल्लेख किया है। यह परम्परा प्राप्त श्रुत परम्परा से कुछ भिन्न-सी प्रतीत होती है। क्योंकि अर्हद्वलि के पश्चात् ग्रंथों में माघनन्दि आचार्य का उल्लेख स्पष्ट रूप से उपलब्ध होता है। गाथा संख्या 88 में धवला ग्रंथ 70,000 हजार श्लोक प्रमाण बताई गई है, जबकि धवला 72,000 हजार श्लोक प्रमाण हैं, तथा इसी कारिका में महाबंध 40,000 श्लोक प्रमाण बताया गया है। इस ग्रंथ के ग्रंथकार के विषय में कुछ विशेष परिचय उपलब्ध नहीं हो सका। आपने अपने गुरु आचार्य रामनन्दि का उल्लेख गाथा संख्या 92 में किया है। इतिहास में रामनन्दिका उल्लेख माणिक्यनन्दि के गुरू के रूप में प्राप्त होता है। जिनका समय ई. सन् 10-11 प्राप्त होता है। ब्रह्महेमचंद का काल निर्धारण का विषय विशेष अन्वेषणीय है। इस ग्रंथ का कार्य करते समय ब्र. राजेन्द्र जैन पठा का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ उनका मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल, जबलपुर के अधिष्ठाता ब्र. जिनेश जी का उपयोगी सामग्री की प्राप्ति में विशेष सहयोग प्राप्त हुआ है। उनका तथा सभी सज्जनों का जिनका की इस कार्य में सहयोग प्राप्त हुआ है, उनका मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ। आशा है कि इस ग्रंथ का लाभ विद्वत् वर्ग के साथ-साथ जन सामान्य भी करेंगे। शब्द अथवा अर्थ जन्य त्रुटियाँ यदि रह गई हों तो विज्ञजन सूचित करने की अनुकम्पा करें। - ब्र. विनोद जैन - ब्र. अनिल जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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