Book Title: Shruta Skandha
Author(s): Bramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 22
________________ ब्रह्महेमचंद्रविरचित वादियों का और बारहवाँ नाथवंश का है। सुण्णदुर्ग वाणवदी अडणवदीसुण्णदोविकोडिपयं । जलगमणथंभणादी पडिवादइ जलगदा णेया ।।32।। 20989200 अर्थ :- जो श्रुतज्ञान दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ पदों द्वारा जल में गमन, जलस्तम्भन के कारणभूत (मंत्र तंत्र, और तपश्चर्या रूप अतिशय) आदि का वर्णन करता है, वह जलगत चूलिका जानना चाहिए। सुण्णदुर्ग बाणउदी अडणवदी सुण्ण दोविकोडिपर्य। भूगमणकारणादी मंतं तंतं मुणइ थलगमणं ॥33॥ 20989200 अर्थ :- जो श्रुत ज्ञान दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ पदों द्वारा भूमि के भीतर गमन करने के कारणभूत मंत्र, तंत्र आदि का वर्णन करता है। वह स्थलगता चूलिका कहलाती है। सुण्णदुर्ग वाणवदी अडणवदीसुण्ण दोविकोडिपयं । इंदजालाई जाणदि बहुभेयगई इंदजालुत्ति ॥34|| 20989200 अर्थ :- जो श्रुत ज्ञान दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ पदों द्वारा मायारूप इन्द्रजाल के कारणभूत तंत्र आदि का वर्णन करता है। वह बहुत भेदों को प्राप्त मायागता नाम की चूलिका है। =[17] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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