Book Title: Shruta Skandha
Author(s): Bramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 23
________________ ब्रह्महेमचंद्रविरचित = सुण्णदुर्ग वाणवदी अडणवदी सुण्ण दोविकोडिपयं । सिंहहरिणचित्तादीविज्जपहावं च रूवगया ॥35|| 20989200 अर्थ :- जो श्रुतज्ञान दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ पदों द्वारा सिंह, हरिण, चीता आदि आकार रूप से परिणमन करने वाली विद्या के प्रभाव रूप मंत्र, तंत्र आदि का वर्णन करता है, वह रूपगता चूलिका है। विशेषार्थ - दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ पदों से संयुक्त रूपगता चूलिका में चेतन और अचेतन द्रव्यों के रूप बदलने की कारणभूत विद्या, मंत्र, तंत्र एवं तप का तथा नरेन्द्रवाद, चित्र और चित्राभासादिका निरूपण किया जाता है। सुण्णदुर्ग वाणवदी अडणवदी सुण्ण दोविकोडिपयं । आयासे गमणाणं सुतंतमंतादिगयणगया ॥36|| __20989200 अर्थ :- जो श्रुत ज्ञान दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ पदों द्वारा आकाश में गमन करने के कारणभूत श्रेष्ठ मंत्र, तंत्र आदि का वर्णन करता है, वह आकाशगता चूलिका है। छक्कं चदुणवचदुदहपदपरिमाणं तु सुण्णतयसहियं । एसो पंचपयारो चूलियणामे णमंसामि ॥37।। 104946000 3 =[18] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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