Book Title: Shruta Skandha
Author(s): Bramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 48
________________ ब्रह्महेमचंद्रविरचित = __ अर्थ :- कामदेव के दर्द को दलन करने वाले, माया, मान और मोह के प्रभाव को हरण करने वाले, चन्द्रप्रभु भगवान् समस्त संघ के लिए सुख प्रदान करे। जयउ जयसयवंतो जयजयसद्देण असुरसुरणमिओ। चंदप्पहुजिणणाहो सुहपरिणामं महं देउ ।।91|| अर्थ :- यशस्वी, जय जय शब्द की ध्वनि द्वारा असुरेन्द्र तथा सुरेन्द्र द्वारा पूजित, चन्द्रप्रभु जिनेन्द्र जयवंत होवे । तथा मुझे शुभ रूप परिणाम देवें। सिद्धतिरामणंदी महापसाएण रयउ सुरबंधो। लइओ संसारफलो देसजई हेमयदेण ।।92।। अर्थ :- मुझ देशव्रती हेमचन्द ने सिद्धान्तिक रामनंदि गुरु के प्रसाद से यह छन्दबद्ध रचना की। तथा त्रिवर्ग रूप संसार सुख को प्राप्त किया। अक्खरमत्ताहीणं जं अत्थविवज्जियं मया भणियं । तं खमउ वीयराओ मम पुणु कम्मक्खयं होउ ।।93।। अर्थ :- अक्षर, मात्रा से रहित तथा अर्थ हीन जो कुछ मुझसे कहा गया हो उसको वीतरागी (मुनि) क्षमा करें तथा मेरे कर्मों का क्षय हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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