Book Title: Shruta Skandha
Author(s): Bramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 47
________________ बाहेमचंद्रविरचित __ अर्थ :- जेठ सुदी पंचमी के दिन, भूतबलि और पुष्पदंत चर्तुविध संघ ने उस श्रुत की पुस्तक (ग्रंथ) के रूप में स्थापना की। इसी दिन अष्ट प्रकार की पूजा की गई इसलिए वह दिन श्रुत पंचमी इस नाम से जाना जाने लगा। श्रुत की विनय से शाश्वत केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है। सदरीसहस्स धवलो जयधबलो सट्टिसहसबोधव्वो। महबंधो चालीसं सिद्धततयं अहं वंदे ॥881 अर्थ :- 70,000 हजार श्लोक प्रमाण धवला, 60,000 हजार श्लोक प्रमाण जयधवला तथा 40,000 हजार श्लोक प्रमाण महाबंध इन सिद्धांतत्रय ग्रंथों की मैं वंदना करता हूँ। विशेषार्थ - उपर्युक्त गाथा में पाठ भेद संभव है क्योंकि धवला टीका 72,000 हजार श्लोक प्रमाण है। महाबंध 30,000 हजार श्लोक प्रमाण हैं। रइओ तिलंगदेसे आरामे कुंडणयरिसुपसिद्धे। चंदप्पहजिणिमंदिरि रइया गाहा इमे विमला 189| अर्थ :- तैलंग देश के कुण्डनगर के उद्यान में चन्द्रप्रभ जिनालय में रहते हुए इन निर्मल गाथाओं की मैंने रचना की। मयरद्धयमहमहणो मायामयमोहमयणपरिहरणो। चंदप्पहु जिणणाहो देउ सुहं सयलसंघस्स ।।90॥ - D[42] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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