Book Title: Shruta Skandha
Author(s): Bramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 42
________________ ब्रह्महेमचंद्रविरचित वइरिजसणामधेओ पण्णयसवणाण चरिम जाणेहु। सिरिणामावहिणाणी अंतिल्लो तित्थ पणमिओ ।।6।। अर्थ :- प्रज्ञा श्रमणों में वज्रयश ऋषि अन्तिम हुए और अवधि ज्ञानियों में अन्तिम श्री नामक ऋषि हुए उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ। चरिमो मउडधरीसो णरवइणा चंदगुत्तणामाए। पंचमहव्वयगहिया अवरिरिक्खाय ओछिण्णा ।।70II अर्थ :- मुकुट धरों में अन्तिम राजा चन्द्रगुप्त ने महाव्रत रूप जिनदीक्षा ग्रहण की। इसके पश्चात् किसी मुकुट धारी ने प्रवज्या ग्रहण नहीं की। णंदी य णंदिमित्तो अवरनिउ पुणु गुवद्धणो णामो। पंचमउ भद्दवाहो पुव्वंगधरा णमंसामि ।।71।। अर्थ :- प्रथम नन्दी, द्वितीय नन्दि मित्र, तृतीय अपराजित, चतुर्थ गोवर्धन और पंचम भद्रबाहु ये पाँच चौदह पूर्व ज्ञान के धारक हुए, उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ। वाससयं तह कालो परिगलिओ वड्डमाणतित्थेसु । एसो भवियं जाणहु भरहे सुदकेवली णत्थि ।।7211 वर्ष 100 वईमाने निर्वाणे गते सति पश्चात् श्रुतकेवली न संजातः [37] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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