Book Title: Shruta Skandha
Author(s): Bramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 29
________________ ब्राहेमचंद्रविरचित = विशेषार्थ - जिसमें समस्त विद्याओं, आठ महानिमित्तों, उनके विषय, राजुराशिविधि, क्षेत्र, श्रेणी, लोकप्रतिष्ठा, संस्थान और समुद्घात का वर्णन किया जाता है वह विद्यानुप्रवाद पूर्व कहलाता है। उनमें अंगुष्ठ प्रसेनादिक अल्पविद्यायें सात सौ और रोहिणी आदि महाविद्यायें पाँच सौ हैं। अंतरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, स्वप्न, लक्षण, व्यंजन और चिह्न ये आठ महानिमित्त हैं। उनका विषय लोक है। क्षेत्र का अर्थ आकाश है। वस्त्र तन्तु के समान अथवा चर्म के अवयव के समान अनुक्रम से ऊपर, नीचे और तिरछे रूप से व्यवस्थित आकाश प्रदेशों की पंक्तियाँ श्रेणियां कहलाती है। छव्वीसं सयसुण्णं तेसट्टिसलाहपुरिसकल्लाणं। पदसंखा विण्णेया कल्लाणणामं परूवंति ||4811 ___260000000 अर्थ :- जिस श्रुत ज्ञान में तीर्थंकर, बलदेव, वासुदेव और चक्रवर्ती आदि त्रेसठ शलाका पुरुषों के गर्भावतरण आदि कल्याणकों की प्ररूपणा की जाती है, उसे कल्याणवाद पूर्व कहते हैं। इसमें छब्बीस करोड़ पद जानना चाहिए। विशेषार्थ - सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारागणों का संचार, उत्पत्ति व विपरीत गति का फल, शकुनव्याहृति अर्थात् शुभाशुभ शकुनों का फल, अरहन्त, बलदेव, वासुदेव और चक्रवर्ती आदिकों के गर्भ में आने आदि के महाकल्याणकों की जिसमें प्ररूपणा की गई हो वह कल्याणवाद नामक पूर्व है। =24] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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