Book Title: Shruta Skandha
Author(s): Bramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 26
________________ ब्रह्महेमचंद्रविरचित = अप्रधान भाव से सिद्ध स्वपर्याय और परपर्याय द्वारा साठ लाख पदों से निरूपण किया जाता है वह अस्ति नास्तिप्रवाद पूर्व है। अर्थात् जिसमें स्वद्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव के द्वारा छह द्रव्यों के अस्तित्व और पर द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव के द्वारा उनके नास्तित्व का निरूपण किया जाता है वह अस्ति-नास्तिप्रवादपूर्व है। एऊणयकोडिपयं अडणाणपयारउदयहेऊणं। तह धरणकारणेविय भणंति णाणप्पवादोयं ॥42|| 9999999 अर्थ :- जो श्रुत ज्ञान एक कम एक करोड़ पदों के द्वारा आठ प्रकार के ज्ञानों के विविध प्रकार, उनके उदय के कारण तथा उनके के कारणों को कहता है, उसे ज्ञानप्रवादपूर्व कहते हैं। विशेषार्थ - जिसमें अनाद्यनिधन, अनादि-सनिधन, सादिअनिधन और सादि-सनिधन आदि विशेषों से पाँचों ही ज्ञानों का प्रादुर्भाव, विषय स्थान इनका तथा ज्ञानियों का, अज्ञानियों का और इन्द्रियों का प्रधानता से विभाग बतलाया गया हो, वह ज्ञानप्रवाद कहलाता है। कोडिपयं अडअहियं कुंतुट्ठयदिट्टणवरिसविसेसा। वेइंदियवयजोया भणंति सच्चप्पवादोयं ॥43॥ 10000008 अर्थ :- जो श्रुत ज्ञान एक करोड़ आठ पदों के द्वारा कण्ठ, ओष्ठ, दांत आदि (जो आठ वचनसंस्कार के कारण भूत है) उनकी विशेषताओं -[21] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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