Book Title: Shruta Skandha Author(s): Bramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Gangwal Dharmik Trust RaipurPage 16
________________ ब्रह्महेमचंद्रविरचित प्रश्नव्याकरण है। तेरानवें लाख सोलह हजार पद युक्त उसमें प्रश्न के आश्रय से नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुख, जीवित, मरण, जय, पराजय, नाम, द्रव्य, आयु व संख्या की तथा लौकिक एवं वैदिक अर्थों के निर्णय की प्ररूपणा की जाती है। इसके अतिरिक्त आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी और निवेदनी इन कथाओं की भी प्ररूपणा की जाती है। चुलसीदिसयसहस्सा कोडिपयं तह विवायसुत्तं वा। सादासादविवायं सूययरं णमहु भावेण ।।20II 18400000 अर्थ :- जो अंग श्रुत एक करोड़ चौरासी लाख पदों के द्वारा सातावेदनीय (पुण्यकर्म) और असातावेदनीय (पापकर्म) के फलों का वर्णन करता है। मैं उसे भावपूर्वक नमस्कार करता हूँ। सुण्णतियं दुगसुण्णं पणेक्वचउकोडिमाण सव्वपयं । एयारसअंगादी पणमामि तिसुद्धिसुद्धेण ||21|| 41502000 अर्थ :- सभी ग्यारह अंगों के कुल पदों का जोड़ चार करोड़ पन्द्रह लाख दो हजार पद है। मैं उन सभी पदों को मन, वचन और काय की शुद्धिपूर्वक प्रणाम करता हूँ। परियम्मसुत्तपुव्वंगपढमाणिओय चूलिया सहिया। पंचपयारं भणियं दिट्ठिबादं जिणिंदेहिं ।।22।। [11] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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