Book Title: Shruta Skandha
Author(s): Bramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 14
________________ ब्रह्महेमचंद्रविरचित प्रोषध, सचितविरति, रात्रिभक्तविरति, ब्रह्मचर्य, आरम्भविरति, परिग्रहविरति, अनुमतिविरति और उद्दिष्टविरति यह ग्यारह प्रकार का देशचारित्र, इसका विस्तारपूर्वक निरूपण किया गया है। तेवीसं अडवीसं लक्खसहस्साउ सुपयमंतकयं । अंतयडदसदस मुणे तित्थे तित्थे णमंसामि ||17|| 2328000 अर्थ :- तेईस लाख अट्ठाईस हजार पदों के द्वारा एक-एक तीर्थंकर के तीर्थ से नाना प्रकार के उपसर्गों को सहन कर निर्वाण को प्राप्त दसदस मुनियों का जो अंग वर्णन करता है, वह अन्तकृद्दशांग है, उसे मैं नमस्कार करता हूँ। विशेषार्थ - जिन्होंने संसार का अन्त कर दिया है वे अन्तकृत् कहे जाते हैं। नमि, मतंग, सोमिल, रामपुत्र, सुदर्शन, यमलीक, वलीक, किष्कंविल, पालम्ब और अष्टपुत्र ये दस वर्धमान तीर्थंकर के तीर्थ में अन्तकृत् हुए है। इसी प्रकार वृषभादिक तेईस तीर्थंकरों के तीर्थ में भिन्न भिन्न दस अन्तकृत् हुए है। इस प्रकार दस दस अनगार घोर उपसर्गों को जीतकर समस्त कर्मों के क्षय से अन्तकृत् होते हैं। चूंकि इस अंग में उन दस दस का वर्णन किया जाता है अतएव वह अन्तकृद्दशांग कहलाता है। बाणउदिलखसहस्सा चउदालं पयमणुत्तरे णवंमि। पडितिच्छेदसदस मुणिउ सग्गाणुत्तरे पत्ता ॥18॥ 9244000 अर्थ :- बानवें लाख चवालीस हजार पदों द्वारा एक-एक तीर्थ में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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