Book Title: Shruta Skandha
Author(s): Bramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 8
________________ ब्रह्माहेमचंद्रविरचित - समवसरणपरियरियो विहरइ गणसहिउ भव्व वोहंतो। पुणु सुदु अणाइणिहणं रिसहजिणो तत्थ पयडेइ ।।7।। अर्थ :- ऋषभ कुमार ने 20 लाख पूर्व बाल अवस्था में व्यतीत कर, 63 लाख पूर्व तक राज्य किया। एक दिन नीलांजना नाम की नृत्यकी का मरण देखकर संसार के दुःखों से विरक्त हो गये तथा चारित्र ग्रहण कर 12 हजार वर्ष छद्मस्थ अवस्था में रहे। तत्पश्चात् केवलज्ञान के उत्पन्न होने पर देवों का आगमन हुआ। समवशरण से परिकृत, 12 सभाओं से सहित भव्य जीवों को संबोधन के लिए बिहार किया। श्रुत अनादि निधन है, उस ही श्रुत को ऋषभ देव ने पुनः प्रगट किया। अवगहईहावाओधारण इंदियमणे बहुविहादी। छत्तीसा तिण्णिसया भेया मदिपुव्वसत्थोयं ॥8॥ 336 अर्थ :- अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा, पाँच इन्द्रियाँ, एक मन तथा बहुविध आदि 12 पदार्थों का परस्पर में गुणा करने पर 336 प्रकार का मतिज्ञान होता है तथा श्रुतज्ञान मतिज्ञान पूर्वक होता है। वयसमिदिगुत्तियादी आयारंगं कहेइ सविसेसं। अट्ठारसहस्सपयं भवियजणा णबहु भावेण ।।।। 18000 अर्थ :- व्रत, समिति और गुप्ति आदि का विस्तारपूर्वक कथन 18 हजार पदों द्वारा आचारांग करता है। भव्यजन मन, वचन और काय से भावपूर्वक उसे नमस्कार करो। 3 -3] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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