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अनुवादककीओरसे...
__ माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रंथमाला से तत्त्वानुशासनादि संग्रह नामक ग्रंथ प्रकाशित हुआ था जिसमें ब्रह्महेमचंदविरचित - "श्रुत-स्कंध" नामक लघुकाय ग्रंथ का प्रकाशन किया गया है। इस ग्रंथ के संक्षिप्त परिचय की अनुक्रमणिका में श्री नाथूलाल प्रेमी जी ने पं. पन्नालाल वाकलीवाल से प्रेस कॉपी की प्राप्ति सूचना दी है, तथा इस सम्पूर्ण संग्रह में प्रकाशित ग्रंथों के संशोधक पं. मनोहरलाल शास्त्री हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि इस मूल ग्रंथ का संपादन पं. पन्नालाल वाकलीवाल जी ने किया है। 'श्रुत-स्कंध' नामक इस ग्रंथ का अनुवाद मुझे कहीं भी देखने में नहीं आया था। विज्ञ लोगों से जानकारी के पश्चात् यही ज्ञात हुआ कि इसका अनुवाद नहीं हुआ है। मैंने और ब्र. अनिल जी ने अतिशय क्षेत्र पपौरा जी में ग्रंथ के अनुवाद का विचार ग्रीष्मकाल में किया था, किन्तु जैनेन्द्र लघु प्रक्रिया के अनुवाद की व्यस्तता के कारण इस कार्य को नहीं कर सके। पश्चात् दीपमालिका के अवसर पर इस कार्य को पूर्ण करने का विचार बना और फलस्वरूप यह कार्य सम्पन्न हो गया। यह सब कुछ प्रातः स्मरणीय आचार्य श्री विद्यासागर जी एवं विद्यागुरु पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य के ही आशीष का फल है, जिससे यह कार्य निर्विघ्न रीति से सम्पन्न हो गया।
ग्रंथ में प्रतिपाद्य विषय
श्रुतस्कंध नामक इस ग्रंथ में बारह अंग रूप श्रुत का स्वरूप क्रमानुसार निरूपित किया गया है। पश्चात भगवान महावीर से लेकर आचार्य पुष्पदंत, भूतबलि, श्रुतधर आचार्य परम्परा का निरूपण किया गया है।
ग्रंथ में विशेषताएँ
गाथा संख्या 43 में सत्यप्रवादपूर्व के पदों की संख्या एक करोड़ आठ पद दी गई है, जबकि धवला तथा जीवकाण्ड में सत्यप्रवादपूर्व के पदों की संख्या एक करोड़ छः दी गई है।
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