Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 18
________________ श्रेणिक पुराणम् मुखराः शब्द शास्त्रज्ञागदन्ति वचनं शुभम् । स्खल जिव्हा न किं तव्दत्पूर्वाचार्या वयं स्मृताः ।। २७ ॥ महायानाः समुद्रेऽस्मिन् यान्तिपारं सुखेच्छया। क्षद्रयानाश्च सर्पन्ति पौर्वाचार्यैर्वयं तथा ।। २८ ॥ नो विषादो विधातव्यो मयावाक्य प्रबन्धने । पूर्व सूरि कृतिं दृष्ट्वा सर्व सूत्रानुसारिणीम् ॥ २६ ॥ महद्धि कालयोद्भूति विभूतिं वीक्ष्यनिर्धनः । यथा न कुर्वतेरोषं सामर्थ्य वृथासहि ।। ३० ।। स्वशब्दं कुरुतेसिंहो भेक: किन्तु करोति न । पूर्वसूरिः स्वशास्त्रं च तनुतेऽहं तथाप्यधा ॥ ३१ ॥ अल्पतर देहोऽहं कुन्थर्देहीति कथ्यते । पर्वत प्राय देहात्मागजोदेही निरूप्यते ॥ ३२ ॥ पुराण तर्क काव्यादि शास्त्रज्ञः कविरुच्ययते । सर्व शास्त्रज्ञ एवाहं कवितां गतवांस्तथा ॥ ३३ ॥ समस्तज्ञानमुक्तोऽपियतेऽहं च तथाप्य हो। विचक्षति न किं मूकः प्रशस्त वचनातिगः ।। ३४ ॥ चरित्र श्रवणात्पुण्यं चरित्र कथनान्नकिम् । जायेत सप्रबुद्धया श्रुत चरित्रं प्रकथ्यते ॥ ३५ ।। तीर्थकृत्व चरित्रस्य श्रवणतीर्थनाथता । इन्द्रत्वं चक्रवतित्वं जायते शुभदेहिनाम् ।। ३६ ।। इतिमत्वा शुभंसारंचरित्रं पावनंपरम् । वक्ष्येऽहं तद्गुणालीनंदृढसंस्कारो भवति ॥ ३७॥ विस्तारादति संक्षिप्तं चरित्रं हरतेमनः । समीचीनं यथापक्वमन्नं धान्य भराच्छुभम् ॥ ३८ ॥ यद्यपि शब्दशास्त्र के जाननेवाले अधिक बोलनेवाले होते हैं तो भी वे वचन शुभ ही बोलते हैं। उसी प्रकार यद्यपि हमारी वाणी स्खलित है तो भी हम शुभ वचन बोलनेवाले हैं इसलिए हम पूर्वाचार्यों के समान ही हैं ॥२७॥ जिस प्रकार बड़े-बड़े जहाजवाले सुखपूर्वक अभीष्ट स्थान को चले जाते हैं और उनके पीछे-पीछे चलनेवाले छोटे जहाजवाले भी सुखपूर्वक अपने इष्ट स्थान को प्राप्त हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार पूर्वाचार्यों के पीछे-पीछे चलनेवाले हमको भी इष्टसिद्धि की प्राप्ति होगी ॥२८॥ तथा जिस प्रकार दरिद्री पुरुष धनिक लोगों के महलों, उनके उदय तथा उनकी अन्य अनेक विभूतियों को देखकर विषाद नहीं करते उसी प्रकार सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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