Book Title: Shravakvrat Darpan Author(s): Kundakundacharya Publisher: Swadhyaya Sangh View full book textPage 8
________________ जिसके पास चाबी है। चाबी के अभाव में, उस तिजोरी की भी कितनी कीमत ? परम-गुरु परमात्मा/सद्गुरु हमें वह चाबी दिखाते हैं | बतलाते हैं, इतना ही नहीं, प्रदान भी करते हैं। चाबी हाथ लगने के बाद उन रत्नों का हम सदुपयोग कर सकते हैं । प्रस्तुत प्रकाशन में, स्वर्गस्थ पूज्यपाद आचार्य देव श्रीमद् विजय कुन्दकुन्द सूरीश्वरजी म. सा. ने जीवनोपयोगी/माधनोपयोगी सफल /सुन्दर मार्गदर्शन प्रदान किया है। अणुव्रत का पालक साधक साधना के पथ पर आगे बढ़ता हुआ सर्व-विरति के पय को पार कर मुक्ति मजिल तक पहुंचता है । व्रत-पालन से पाप-मल का आगमन बन्द होता है । जप-साधना से चित्त का शोधन होता है । विरति-धर्म से प्रास्रव द्वार बन्द होते हैं । जप-साधना में पूर्व संचित कर्मों की निर्जरा होती है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं । किसी की भी उपेक्षा उचित नहीं है । • व्रतपालन द्वारा जीवन को साधनामय बनाकर, सभी आत्माएँ मुक्तिमार्ग में मागे बढ़ें, इसी शुभेच्छा के साथ -मुनि रत्नसेन विजयPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52