Book Title: Shravakvrat Darpan
Author(s): Kundakundacharya
Publisher: Swadhyaya Sangh

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Page 46
________________ ही परिमाण है ऐसा नहीं, किंतु उपलक्षण से भोगोपभोग व्रतों का भी संक्षप इस व्रत में किया जाता है। उन सबको देशावकाशिक कहते हैं। (११) पौषध व्रत अष्टमी, चतुर्दशी आदि चारों पर्यों में उपवासादि तप करना, पापवाली सदोष प्रवृत्ति का त्याग करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना और शरीर के संस्कारों का त्याग करना, इस तरह पौषध व्रत चार प्रकार का है। धर्म का पोषण करे वह पौषध । ये चार प्रकार के पौषध सर्व से और देश से दो प्रकार के हैं। इनमें पूर्वाचार्यों की परम्परा से वर्तमान में आहार पौषध सर्व से और देश से तथा बाकी का पौषध सर्व से ही होता है। आहार पौषध में चोविहार उपवास वह सर्व पौषध है और तिविहार उपवास, आयंबिल, निवि, एकासना आदि देश पौषध हैं; अन्य व्रतों की अपेक्षा इस व्रत में त्याग की शिक्षा विशेष मिलती है, साधु-जीवन को पवित्रता का अांशिक परिचय होता है, क्योंकि इसमें जीवन पर्यन्त नहीं, फिर भी चार प्रहर या आठ प्रहर की मर्यादा वाली सामायिक का आचरण होता है। गृहस्थ-जीवन में रहकर भी कठिनाई से पालन किया जा सके ऐसे पवित्र पौषध व्रत का जो पालन करता है, वह चुलनी पिता की तरह धन्यवाद का पात्र है। (१२) अतिथिसंविभाग व्रत अन्न, पानी आदि चार प्रकार का आहार, पात्र, वस्त्र और रहने के लिए स्थान अतिथियों-साधुओं को देना, यह अतिथिसंविभाग नाम का व्रत है। श्रावकवत दर्पण-३७

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