Book Title: Shravakvrat Darpan
Author(s): Kundakundacharya
Publisher: Swadhyaya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ व्रतों में अतिचारों से बचने के उपाय क्रोध से मनुष्य अथवा पशु को कठोर बंधन से नहीं बांधना। किसी प्राणी के अंगोपांग को नहीं छेदना। प्राणियों से शक्ति उपरान्त काम नहीं लेना। मतलब यह है कि दया-धर्म का पशु, मजदूर, नौकर, चाकर आदि से ह्रास न हो, इस प्रकार काम लेना। प्राणियों के मर्म-स्थान आदि में प्रहार नहीं करना । जीवों को भूखा-प्यासा नहीं रखना, दूसरों को दुःख हो ऐसा पापकारी उपदेश नहीं देना। विचार किये बिना या अभिप्राय जाने बिना अचानक किसी को 'तू चोर है', 'व्यभिचारी है', ऐसे गलत आरोप नहीं लगाना। दूसरे की गुप्त बात अनुमान से जानकर प्रकट नहीं करना । भोतर ही भीतर प्रीति ट जाय ऐसा काम नहीं करना अथवा मित्र की गुप्त बात नहीं बताना। झूठा नाम नहीं लिखना। खराब सलाह नहीं देना। लोग गलत रास्ते पर जावें ऐसा भाषण नहीं देना। किसी को चोरी करने की प्रेरणा नहीं करना। चोरी का माल नहीं खरीदना। राज्य के हित में बने नियमों का उल्लंघन नहीं करना। कर (टैक्स) की चोरी नहीं करना। माल में किसी प्रकार की मिलावट नहीं करना। गलत तौल या गलत माप नहीं रखना। कामभोग सम्बन्धी तीव्र अभिलाषा नहीं रखना। शर्म, मर्यादा-भंग होने वाला आचरण नहीं करना। लिये हुए परिग्रह परिमारण का प्राशय कम हो, इस प्रकार संख्या, तौल या भाव प्रांकने में गड़बड़ नहीं करना। श्रावकव्रत दर्पण-३९

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52