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सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होती है। जो जीव तेज प्रकाश में नहीं दिखाई देते वे जीव रात को खाने वाले की थाली में उड़-उड़कर गिरते हैं और वे मरण के शरण होते हैं।
रात्रि-भोजन के दोष को जानने वाले जो व्यक्ति दिन प्रारम्भ से और सूर्यास्त पूर्व दो घड़ी का त्याग कर शेष दिन में में ही भोजन करते हैं, वे पुण्य के भागी होते हैं। जो मनुष्य दिन का त्याग कर रात्रि को भोजन करते हैं, वे रत्न का त्याग कर कांच को स्वीकार करते हैं। जो भाग्यशाली पुरुष सर्वदा रात्रि-भोजन का त्याग करते हैं, वे अपने प्राधे आयूष्य के उपवासी होते हैं। रात्रि-भोजन से होने वाले पाप के प्रभाव से परभव में उल्लू, कौना, बिल्ली, गिद्ध, कबूतर, सूअर, सर्प, बिच्छू और गिलहरी आदि की नीच योनि में जन्म लेना पड़ता है। इस प्रकार की योनि में जन्म लेने वाले पशु-पक्षी अधिकतर मांस का ही आहार करने वाले होते हैं, इसलिये वहाँ से मरकर वे दुर्गति में जाते हैं। इससे यह भी सिद्ध होता है कि रात्रि-भोजन करने वाला तिर्यंचगति में जाकर परम्परा से नरक आदि दुगति का मेहमान बनता है।
रात्रि-भोजन का त्याग धर्मदृष्टि से हितकर है, इतना ही नहीं अपितु आरोग्य की दृष्टि से भी वह सबका अत्यन्त हित करने वाला ही है। रात्रि-भोजन करने वाले को शारीरिक क्या हानि होती है ? उस विषय में शास्त्रकार फरमाते हैं कि
मेधां पिपीलिका हन्ति, यूका कुर्याज्जलोदरम् । कुरुते मक्षिका वान्ति, कुष्टरोगं च कोलिकः ॥१॥ अर्थ--चींटी बुद्धि का नाश करती है, जू खाने से जलोदर
श्रावकवत दर्पण-२६