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अर्थ-मदिरा (शराब), मांस, रात्रि-भोजन और कन्दमूल का भक्षण जो लोग करते हैं, उनकी तीर्थ-यात्रा, तप-जप सब व्यर्थ हैं।
मद्यमांसाशनं रात्रौ, भोजनं कंदभक्षणं । भक्षरणान्नरकं याति, वर्जनात् स्वर्गमाप्नुयात् ॥ ६॥
अर्थ-मदिरा, मांस-भक्षण, रात्रि-भोजन और जमीकन्द खाने से मनुष्य नरक में जाता है और इन्हें छोड़ देने से स्वर्ग प्राप्त होता है।
चातुर्मास्ये तु संप्राप्ते रात्रिभोज्यं करोति यः। तस्य शुद्धिर्न विद्यत, चांद्रायणशतैरपि ॥ ७॥
अर्थ-चातुर्मास आने पर भी जो रात्रि-भोजन करता है, उसकी सैकड़ों चांद्रायण तप से भी शुद्धि नहीं होती।
मार्कण्डेय-पुराण में भी कहा है किअस्तं गते दिवानाथे, पापो रुधिरमुच्यते । अन्न मांसरूपं प्रोक्त, मार्कण्डेरण महषिरणा ॥८॥
अर्थ--सूर्य अस्त होने पर पानी पीना खून पीने के बराबर है और अन्न खाना तो मांस खाने के तुल्य है, ऐसा मार्कण्ड ऋषि ने भी कहा है।
पद्म-पुराण में भी कहा है किमते स्वजनमात्रेपि, सूतकं जायते किल । अस्तं गते दिवानाथे भोजनं क्रियते कथम् ॥६॥ उदकमपि न पातव्यं, रात्रावत युधिष्ठिर। तपस्विना विशेषेण, गृहिणा तु विवेकिना ॥१०॥
श्रावकवत दर्पण-२८