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रूप रोग से पीड़ित जीवों के लिए परम प्रौषधि तुल्य अहिंसा ही है ।। २ ॥
हेमाद्रिःपर्वतानां हरिरमृतभुजां, चक्रवर्ती नराणां , शीतांशुर्योतिषां स्वस्तरुरवनिरुहां चंडरोचिर्गहाणाम् । सिन्धुस्तोयाशयानां, जिनपतिरसुरामर्त्यमाधिपानां , यद्यद्वताना-मधिपतिपदवीं यायहिंसा किमन्यत् ॥ ३ ॥
अर्थ-पर्वतों में जैसे मेरु, देवों में जैसे इन्द्र, मनुष्यों में जैसे चक्रवर्ती, ज्योतिषगण में जैसे चंद्र, वृक्षों में जैसे कल्पवृक्ष, ग्रहों में जैसे सूर्य, जलाशयों में जैसे समुद्र, नरेन्द्र, देवेन्द्र और असुरेन्द्रों में जैसे जिनेश्वरदेव महान् हैं उसी तरह सर्व व्रतों में अहिंसा व्रत शिरोमणि भूत है।
दीर्घमायुः परं-रूप-मारोग्यं श्लाघनीयता। अहिंसायाः फलं सर्वे किमन्यत्कामदेव सा ॥४॥
अर्थ--सुखदायी दीर्घ आयुष्य, उत्तम रूप, नीरोगता और प्रशंसनीयता ये सब अहिंसा के फल हैं, ज्यादा कहने से क्या ? सब प्रकार के मनोवांछित फल देने के लिए अहिंसा कामधेनु के समान है।
(२) सत्य (दूसरा अणुव्रत) गृहस्थों का दूसरा अणुव्रत असत्य न बोलने सम्बन्धी है । स्थूल असत्य पाँच प्रकार का है। विवेकी मनुष्यों को किसी भी तरह का असत्य नहीं बोलना चाहिये और उसमें भी कन्या सम्बन्धी, गाय सम्बन्धी, भूमि सम्बन्धी, न्यास सौंपने सम्बन्धी
श्रावकवत दर्पण-१०