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पुष्टि के लिए जो मनुष्य अन्य जानवरों के मांस का भक्षण करता है, वह भी उन जीवों का घातक है ।
दूसरी अन्य खाने की वस्तु होने पर भी जो आदमी मांस का भक्षण करता है, वह अमृत रस को छोड़कर हलाहल विष को पीता है। निर्दयी मनुष्य में धर्म नहीं होता। मांस खाने वाले में दया कहाँ से होगी ? मांस में लुब्ध होने वाला मनुष्य दया और धर्म को नहीं जानता अथवा कदाचित् जान भी ले तब भी स्वयं मांसभक्षक होने से उसकी निवृत्ति के लिए दूसरे को उपदेश नहीं दे सकता। शुक्र और खून से उत्पन्न हुए, विष्टा के रस से वृद्धि को प्राप्त हुए, खून से युक्त, जमे मल रूप मांस को कौन बुद्धिमान् मनुष्य खायेगा ? अर्थात् समझदार मनुष्य तो उसका स्पर्श भी नहीं करेगा। मांस के उत्पन्न होने के साथ ही उसमें अनन्त जन्तु उत्पन्न हो जाते हैं। इससे मांसाहार करने वाला अनन्त जन्तुओं का घातक होता है। पंचेन्द्रिय प्राणी का वध करने से, वध में निमित्तभूत बनने से, उसका मांस खाने से प्राणी नरक में जाता है और वहाँ उसे दुःसह पीड़ा भोगनी पड़ती है। परलोक में अनन्त दु:ख के लिए और इस लोक में किंचित् मात्र सुख के लिए मांस भोजन की प्रवृत्ति कौनसा विवेकी पुरुष क्षुधातुर हो तब भी करे ? अर्थात् नहीं करेगा। जीवहिंसा के पाप से प्राप्त हुई नरक की वेदना किसी भी प्रकार से शान्त नहीं होती जिसमें प्राणी का वध होता है, ऐसा मांसभोजन छोड़ देने वाला और दया धर्म का पालन करने वाला जीव भवोभव सुखी होता है ।
मक्खन खाने के दोष-छाछ में से बाहर निकालने के बाद अंतर्मुहूर्त में मक्खन में बहुत सूक्ष्म जन्तुओं का समूह पैदा हो जाता
श्रावकत्रत दर्पण-२३