Book Title: Shravakvrat Darpan
Author(s): Kundakundacharya
Publisher: Swadhyaya Sangh

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Page 27
________________ कारण समान ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले मनुष्य, बड़े पूज्यों की तरह पूजे जाते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले मनुष्य, दीर्घ आयुष्य वाले, सुन्दर प्राकृति वाले, बलवान, तेजस्वी, उत्तम चारित्र वाले तथा महान् पराक्रमी होते हैं। एतदर्थ मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। (५) परिग्रहपरिमाण व्रत (पाँचवाँ अणुव्रत) परिग्रह की इच्छा-नियंत्रण रूप गृहस्थों का पाँचवाँ अणुव्रत है -धन-धान्यादि नव प्रकार के परिग्रह का परिमाण करना। परिमाण से अधिक हो जाने पर उसका शुभ-मार्ग में सदुपयोग कर देना चाहिये। परिग्रह के दोष परिग्रह अर्थात् प्रासंग, आसक्ति अथवा मूर्छा। मूर्छा के कारण असंतोष, अविश्वास और दुःख के कारण रूप प्रारम्भ में प्रवृत्ति होती है। जैसे अतिशय वजन भरने से जहाज समुद्र में डूब जाता है, वैसे अतिपरिग्रह से प्राणी भवसागर में डूब जाता है। परिग्रह में अणु जितना भी गुण नहीं है, परन्तु पर्वत के समान बड़े-बड़े दोष उत्पन्न होते हैं। परिग्रह से राग-द्वेष आदि शत्रु प्रकट होते हैं। परिग्रह से आन्दोलित आत्मा वाले त्यागियों का भी चित्त चंचल हो जाता है, तो गृहस्थों की तो बात ही क्या? संसार का मूल कारण हिंसादि प्रवृत्तियाँ हैं और उन प्रवृत्तियों का कारण परिग्रह है। इसलिये उपासक को जितना बन सके उतना अल्प परिग्रह रखना चाहिये। संग अथवा आसक्ति के वश हुए मनुष्य का संयम रूपी धन विषय रूपी चोर लूट लेते हैं, उसे काम रूपी अग्नि निरन्तर जलाती है और स्त्रियाँ रूपी श्रावकवत दर्पण.-१८

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