Book Title: Shatkhandagama Pustak 02 Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati View full book textPage 9
________________ इस विभागके संशोधनमें भी हमें अमरावती जैनमन्दिरकी प्रतिके अतिरिक्त आराके सिद्धान्त भवन तथा कारंजाके महावीरब्रह्मचर्याश्रमकी प्रतियोंका लाभ मिलता रहा तथा सहारनपुरकी प्रतिके जो कुछ पाठभेद पहलेसे नोट थे उनसे लाभ उठाया गया है। अतएव इन सब प्रतियोंके अधिकारियोंके हम अनुगृहीत हैं। श्रीमन्त सेठ लक्ष्मीचन्द्रजी और जैन साहित्योद्धारक फंडकी ट्रस्ट कमेटीके अन्य सब सदस्योंका इस कार्यको प्रगतिशील बनाये रखनेमें पूरा उत्साह है, और इस कारण हमें व्यवस्था किसी विशेष कठिनाईका अनुभव नहीं हुआ, बल्कि आगे सफलताकी पूरी आशा है ।। यूरोपीय महासमरके कारण इस खंडके लिये यथेष्ट कागज आदिका प्रबंध करनेमें बड़ी कठिनाई उपस्थित हुई, जिसको हल करनेमें हमारे निरन्तर सहायक पंडित नाथूरामजी प्रेमीका हमपर बहुत उपकार है। सत्साहित्यकी कदर करनेवाले मर्मज्ञ पाठकोंने प्रथम जिल्दका जो खागत किया है और उसके लिये हमारी ओर जो प्रशंसाके भाव व्यक्त किये हैं, उसके लिये हम उनकी गुणग्राहकताके कृतज्ञ हैं । पर हम यह फिर भी व्यक्त कर देते हैं कि इस महान् कठिन कार्यमें यदि हमें सचमुच कुछ सफलता मिल रही है तो उसका श्रेय हमें नहीं, किन्तु समाजकी उसी सद्भावना और समयकी प्रेरणाको है जो उचित कालमें उचित कार्य किसी न किसीसे करा लेती है। इस सम्बंध हमारी तो, महाकवि कालिदासके शब्दोंमें, यही धारणा है कि सिध्यन्ति कर्मसु महत्स्वपि यन्नियोज्याः सम्भावनागुणमवेहि तमीश्वराणाम् । किंवाऽभविष्यदरुणस्तमसा विभेत्ता तं चेत्सहस्रकिरणो धुरि नाकरिष्यत् ॥ किंग एडवर्ड कालेज, अमरावती १५/७/४० हीरालाल जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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