Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak Author(s): Parvati Sati Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak View full book textPage 6
________________ ( २ ) निर्णायकं वादिप्रत्यभिवादिवादनियत प्रश्नात्तरालङ्कृतम् ॥ युत्तयुक्ति प्रविभूषितं प्रति पदं सूत्रप्रमाणान्वितं वाढं स्त्युत्य मिदं सुपुस्तक मिदं श्रीपार्वती निर्मितम् ॥२॥ ___अर्थ-श्री पार्वती जी का बनाया हुआ यह पुस्तक मेरी राय में बहुत तारीफ के लायक है जोकि मर्ति पूजा करनी चाहिये वा नहीं करनी चाहिये इन दोनों मतों में से आखीर के मत को यानि नहीं करनी चाहिये इस को निर्णय कर रहा है और वादि प्रतिवादियों के बाद में जो प्रश्नो. तर होते हैं उन प्रश्नोत्तरों से भषित है, और युक्तियें और प्रत्युक्तियां भी जिस में बहुत अच्छी है और हर एक जगह हर एक विषय पर सत्रों के प्रमाण जिस में दिये गये हैं। आबालमा वार्डक भेकरूप दृष्टं मनःशान्त रसं तदीयम् ॥ अश्रावि शिष्येण न किंचिदन्यत्तस्या मुखाज्जैन मतोपदेशात् ॥३॥Page Navigation
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