Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak Author(s): Parvati Sati Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak View full book textPage 5
________________ प्रशंसापत्र। OPINIONS OF THE WELL-KNOWN PUNDITS. नोचित्रं यदि पुरुषा निजधिया ग्रन्थं विद ध्युर्नवं यस्माज्जन्मत एव शास्त्रसरणौ तेषां गतिर्विद्यते ॥आश्चर्यं खलु तत्स्त्रियाव्यरचि यल्लोके नवं पुस्तकं यस्मात्सर्गत एव मन्द मतयस्ताःसंतृतौ विश्रुताः ॥१॥ , अर्थ--अगर पुरुष अपनी अकल से कोई नया ग्रंथ बनाए तो कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि उन की जन्म ही से लेकर शास्त्र की सड़क पर सैर हो रही है । आश्चर्य तो यह है कि स्त्री होकर कोई नया पुस्तक बना दे क्योंकि स्त्रियों को संसार में कम अकल ख्याल करते हैं। १।। मूर्त्यर्चा विहिता नवेति मतयो रन्त्यस्यPage Navigation
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