Book Title: Satya ki Khoj Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 9
________________ ८ आइंस्टीन का यह सिद्धांत है कि द्रव्य (Mass) को शक्ति (Energy) में और शक्ति को द्रव्य में बदला जा सकता है । इस द्रव्यमान द्रव्य — संहति और शक्ति के समीकरण के सिद्धान्त की व्याख्या परिणामि - नित्यवाद के द्वारा ही की जा सकती है । • सत्य की खोज चिन्तन-मनन और दर्शन से हुई है। उसका विकास सामाजिक सन्दर्भ में हुआ है । • चेतन और अचेतन- दोनों निरपेक्ष सत्य हैं तथा उनमें होने वाले परिवर्तन सापेक्ष सत्य हैं। निरपेक्ष और सापेक्ष — दोनों सत्यों की समन्विति ही वास्तविक सत्य है । इस प्रकार प्रारम्भ से अन्त तक यह एक रोचक कृति बन पड़ी है। वेषय सामग्री में रोचकता उत्पन्न करने के लिए भिन्न-भिन्न स्थानों पर लघु संवादों व दृष्टान्तों का प्रयोग अतीव मनोहर रूप में प्रकट हुआ है । भगवान् महावीर की पच्चीसवीं निर्वाण शताब्दी पर इस पुस्तक का प्रथम संस्करण आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित हुआ था । तत्पश्चात् द्वितीय संस्करण की आवश्यकता दीर्घ समय से निरन्तर अनुभव की जा रही थी अतः तुलसी अध्यात्म नीडम् प्रकाशन द्वारा इसे नये रूप में सत्यान्वेषी पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया। नवीन संस्करण की जरूरत हुई । हमें यह छठा संस्करण निकालते हुए परम हर्ष हो रहा है । हमें आशा है कि मौलिक कृति पाठकों के साधना - पथ में सहयोगी बनेगी । पर स्मरण रखें - सत्य की खोज स्वयं की अज्ञात गहराइयों में छलांग लगाने का साधन है । सत्य की खोज स्व-परिवर्तन का मूल मंत्र है। सत्य की खोज स्वयं को पुनर्जन्म की प्रसव पीड़ा से गुजरने की तैयारी है । मंगल कामनाओं के साथ 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रकाशक www.jainelibrary.orgPage Navigation
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