Book Title: Sasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 4
________________ 2] ससुराल जाते समय wCRECIRCROCEROCHROCHOCHOCHECREECSECREECRECOR लालन पालन किया है उसका व पितादि जनोंका भी प्रेम पुत्रीसे क्या एकदम छूट सकता है? नहीं२, परंतु यह अनादिकी प्रथा है कि पुत्रसे अपना और पुत्रीसे पराया वंश चलता है। अर्थात् पुत्री परघरके लिये ही हुई है, इसमें हर्ष विषाद ही क्या करना चाहिये? यह विचार कर माता पुत्रीके मस्तकपर हाथ रखकर प्रेमाश्रु टपकाती और अपने अंचलके छोरसे पुत्रीके आंसू पोंछती हुई मधुर गद्गद् स्वरसे बोली (3-4) "मेरी प्यारी बेटी! तू अपने मनमें किंचित् भी खेद मत कर और हर्षित होकर जा। अब विलम्ब मत कर, मैं तुझे शीघ्र ही रक्षाबंधनके पवित्र पर्व पर बुला लूंगी। उठ! आंसू पोंछ मनमें कुछ भी चिंता मत कर। तेरी सासूजी बहुत सरल स्वभाववाली दयालु और साध्वी स्त्री हैं। संसारमें उनके समान विरली ही स्त्रियां होंगी। तुझे तेरे सौभाग्यसे ही ऐसी सासू मिली है," ऐसा कहती हुई माता मानों हर्षसे फूली नहीं समाती थी, बोली-बेटी! विजयालक्ष्मी! तू भाग्यवान हैं जा, और जिस प्रकार तेरी भक्ति तथा प्रेम मेरे उपर है उसी प्रकार अपनी सासूमें भक्ति तथा प्रेम रखना और उन्हींको माता समझकर सदा विनयपूर्वक उनकी सेवा सुश्रुषा व आज्ञा पालन करते रहना। (5) बेटी! मैंने तुझे जन्म दिया है और तबसे अबतक लालन पालन किया है, इसलिये अबतक मैं तेरी माता थी, परंतु अबसे जीवनपर्यंत तेरी माता तो सासूजी ही हैं। आजसे तेरे लिये जो कुछ भी सुख आदि होनहार है उस सबका भार तेरी सासूजी पर ही है। वे ही अब तेरी सच्ची माता हैं, ऐसा समझकर अब तू हम समस्त जनोंका वियोगजनित दुःख भूल जा।

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