Book Title: Sarva Darshan Sangraha Author(s): Umashankar Sharma Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan View full book textPage 7
________________ ( २६ ) अधिक से अधिक स्पष्ट रूप में निर्विकार भाव से उन्होंने की है। यही कारण है कि भारतीय दर्शनों के अध्ययन में उनके सर्वदर्शनसंग्रह का महत्त्व इतना अधिक अंकित हुआ है। अब हम कुछ देर के लिए अपने विवेच्य विषय से हटकर दर्शन-शास्त्र के विषय में सामान्य रूप से कुछ विचार करें उसी परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत ग्रन्थ का मूल्यांकन करें। ___ दर्शन-शब्द का व्युत्पत्ति-जन्य अर्थ है देखना, विचारना, श्रद्धा करना। आदि-काल से ही मानव ने अपने जीवन में दर्शन को प्रमुख स्थान दिया था। वस्तुतः जीवन के प्रति मनुष्य का दृष्टिकोण ही दर्शन है जो व्यक्ति-व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न हुआ करता है। मनुष्य में अपने आस-पास के पदार्थों को समझने के लिए जिज्ञासा की लहरें सदा दौड़ा करती हैं। यही नहीं, उसके साथ इन वस्तुओं का क्या सम्बन्ध है, उस सम्बन्ध का निरूपण कौन करता है, उसके ज्ञान के क्या ताधन हैं, इत्यादि कितनी ऐसी शंकायें हैं जिनसे मनुष्य को चिन्तनकी प्रेरणा मिलती रहती है । सामान्य रूप से दर्शन के आविर्भाव का यही इतिहास है। इस विषय में भी भारतवर्ष की अपनी विशेषता है। ऐसा कहा जाता है कि भारतीय दर्शन दुःख की आधार-शिला पर प्रतिष्ठित है। प्रायः सभी दर्शन दुःख-निवृत्ति के लिए ही उपायों के अन्वेषण में लगे हुए हैं। यह एक निश्चित तथ्य है कि प्राणी संसार में त्रिविधात्मक दुःखों से ग्रस्त है। उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि सुख की प्राप्ति करे। यह तो एक दूसरी विशेषता है कि एक ही उपाय से दुःख का निवारण तथा सुख का आसादन भी हो जाय लेकिन वह सुख है क्या चीज ? क्या रुपये पा लेना, परीक्षा में प्रथम होना, या नौकरी पा लेना ही सुख है ? उत्तर होगा कि ये सभी सुख न केवल क्षणिक है अपितु ये अतिशय से भरे हुए हैं अर्थात् इन सबों में एक से बढ़कर एक सुख है । इनकी कोई सीमा नहीं । एक सुखद वस्तु मिलने पर दूसरी की कामना होती है । यही नहीं, कभी-कभी तो सुख की एक निश्चित परिभाषा देना भी असम्भव हो जाता हैं । जो वस्तु राम के लिए सुखद है, मोहन के लिए नहीं। दर्शनों का लक्ष्य है कि किसी भी उपाय से सर्वोच्च सुख की प्राप्ति का उपाय बतलायें जो साथ ही साथ इस जगत् के दुःखों का आत्यन्तिक निवारण में समर्थ हो । सांसारिक दुःखों को बन्धन और उनकी निवृत्ति को दार्शनिक भाषा में मोक्ष के नाम से पुकारते हैं। यही बन्धन और मोक्ष भारतीय दर्शनों का मुख्य प्रश्न रहा है। यह दूसरी बात है कि उनके स्वरूप पर विभिन्न मत है अथवा दुःख-निवृत्ति के उपायों के विश्लेषण में मत-भेद है । कोई दर्शनिक कह सकता है कि महेश्वरPage Navigation
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