Book Title: Saptatishatsthanprakaranam
Author(s): Somtilaksuri, Ruddhisagarsuri
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
________________ सहस्राणि चतुरशीतिर्द्विसप्तति-रष्टषष्टिः षड्षष्टिस्तथा च चतुःषष्टिः // द्विषष्टिः षष्टिःपञ्चाशत् , चत्वारिंशत् त्रिंशच्च विंशतिश्च // 233 // अष्टादश षोडश चतुर्दश-सहस्राणि ऋषभादीनां मुनिसंख्या // अष्टाविंशतिलक्षा-ण्यष्टचत्वारिंशत्सहस्राणि सर्वात // 234 // संजइलक्खातिनिय 1, तिन्नियतीसाय 2 तिन्निछत्तीसा 3 / छच्चयतीसा 4 पंचय, तीसा५ चत्तारि-वीसाय 6 // 235 // चउरोतीसा 7 तिनिअ, सीया 8 इगलक्ख वीस सहसहिओ 9 // लक्खोयसंजइ छगं 10, लक्खोतिसहस्स 11 लक्खोय 12 // 236 // इगलक्खो अट्ठसया 13, सहसविसट्ठी 14 बिसट्टि चउरसया 15 / इगसट्टि छसय 16 सट्ठी, छसया 17 सट्ठीअ 19 पणपन्ना 19 // 237 // पन्न 20 इग चत्त 21 चत्ता 22, अडतीस 23 छतीस 24 सहस सबग्गे / चउआललक्खसहसा, छायाला चउसया छहिया // 238 // संयतीनां त्रिलक्षं, त्रीणि च त्रिंशत् त्रीणि षट्त्रिंशत् / षट् च त्रिंशत् पञ्च च, त्रिंशत् चत्वारि विंशतिश्च // 235 // चत्वारि त्रिंशत् त्रीणिचा-शीतिरेकलक्षं विंशतिसहस्राधिकम् / / लक्षं च संयतिषट्कं, लक्षं त्रीणि सहस्राणि लक्षं च // 236 // एकलक्षमष्टशतं, सहस्राणि द्विषष्टिर्द्विषष्टिः चतुः शतम् / एकषष्टिः षट्शतं षष्टिः, षट्शतं षष्टिश्च पञ्च पञ्चाशत् / / 237 //
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