Book Title: Saptatishatsthanprakaranam
Author(s): Somtilaksuri, Ruddhisagarsuri
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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________________ ( 78 ) गुरुलहुमज्झिमतणुणो, पुरिसा दो चउसयं च अट्ठहियं // सिझंति एगसमए, सुआउ नेओ विसेसत्थो // 345 // गुरुलघुमध्यमतनुकाः, पुरुषौद्वौ चतुःशतं चाऽष्टाधिकम् / / सिध्यन्त्येकसमये, श्रुताज्ज्ञेयो विशेषार्थः // 345 // एकसमयेण जुगवं, उक्कोसोगाहणाइ जं सिद्धा // उसहो नवनवइसुआ, भरहट्ठसुआ अ तं पढमं // 346 // एकसमयेन युगप-दुत्कृष्टावगाहनया यत् सिद्धाः // ऋषभोनवनवतिसुता-भरताष्टसुताश्चतत्प्रथमम् // 346 // सीअलतित्थे हरिवा-सजुयलिओ पुचवेरिअमरेणं / / रज्जे ठविओ तत्तो, हरिवंसोसेसपयडत्था // 347 // शीतलतीर्थे हरिव-र्षयुगलिकः पूर्ववैर्यमरेण // राज्ये स्थापितस्ततो-हरिवंशः शेषं पंगटार्थम् // 347 // चक्की भरहो सगरो, मघवं सणंकुमरसंतिकुंथुअरा // सुभुममहपउम हरिसे-ण जयनिवोबंभदत्तोअ // 348 // चक्री भरतः सगरो, मघवा सनत्कुमारशान्ती कुंथुररः // सुभूमो महापद्मो-हरिषेणो जयनृपो ब्रह्मदत्तश्च // 348 / / विण्हु तिविट्ठ दुविठू , सयंभुपुरिसुत्तमेपुरिससीहे // तहपुरिसपुंडरीए, दत्ते लक्खमण कण्हेअ // 349 // विष्णुत्रिपृष्ठो द्विपृष्ठः, स्वयम्भूः पुरुषोत्तमः पुरुषसिंहः / तथा पुरुषपुण्डरीको-दत्तो लक्ष्मणः कृष्णश्च // 349 / / हरिजिट्ठभायरोनव, बलदेवा अयल विजयभद्दाअ // सुप्पहसुदंसणाणं-दनंदणा रामबलभद्दा // 350 //
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