Book Title: Saptatishatsthanprakaranam
Author(s): Somtilaksuri, Ruddhisagarsuri
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 329
________________ ( 68) . जहजुग्गं कुमरनिवइ-चक्कीकालेहिं होइ गिहिकालो। वयकालाओ केवलि-कालो छउमत्थकालूणो // 298 // यथायोग्यं कुमरनृपति-चक्रिकालैर्भवति गृहिकालः / व्रतकालतः केवलि-कालश्छद्मस्थकालोनः // 298 // पुवाण लक्खमेगं, तं पुवंगूण तं सगजिणाणं // पुण पुण चउअंगूणं, तो पुवसहस्सपणवीसं // 299 // समलक्खा इगवीसं, चउपनापनर सड्डसत्तेव // सड्ढदुगं तो सहसा, पणवीसं पउणचउवीसं // 300 // इगवीसं चउपना, सनवसया सड्डसत्त सड्ढदुगं। तो सत्तसया सयरी, दुचत्तवासाणि वयकालो // 301 / / पूर्वाणां लक्षमेकं, तत्पूर्वाङ्गोनं तत्सप्तजिनानाम् // पुनः पुनश्चतुरङ्गोनं, ततः पूर्वसहस्रपञ्चविंशतिः // 299 // समलक्षा एकविंशति-श्चतुः पञ्चाशत्पञ्चदशसार्द्धसप्तैव / सार्द्धद्वे ततः सहस्राः, पञ्चविंशतिः पादोनचतुर्विंशतिः // 300 // एकविंशतिश्चतुः पश्चाश-त्सनक्शतानि सार्द्धसप्त सार्द्धद्वे // ततःसप्तशतानि सप्तति-र्द्विचत्वारिंशद्वर्षाणि व्रतकालः॥३०१॥ सवाउ चुलसि 1 बिसयरि २-सठि 3 पन्ना 4 चत्त 5 तीस 6 वीस 7 दस 8 // दो 9 एगपुत्व लक्खा 10, सम चुलसी 11 बिसयरी 12 सट्ठी 13 // 302 // तीस 14

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