Book Title: Saptatishatsthanprakaranam
Author(s): Somtilaksuri, Ruddhisagarsuri
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
________________ ( 73 ) पद्मस्य त्रिशत्यष्टाधिका-नेमिजिनेन्द्रस्य पञ्चशतषट्त्रिंशत् // धर्मस्याष्टाऽधिकशतं, षट्शतानि वासुपूज्यस्य // 219 // पार्श्वस्य त्रयस्त्रिंशत् मुनयो-वीरस्स च नास्ति सहस्रं शेषाणाम् // अष्टत्रिंशत्सहस्रचतुः शतानि, पञ्चाशीतिः सर्वपरिवारः / 320 / अवरण्हे सिद्धिगया-संभवपउमाभसुविहिवसुपुजा // सेसा उसंहाईया, सेयंसंता उ पुवण्हे // 321 // धम्मअरनमीवीरा-ऽवररत्ते पुत्वरत्तए सेसा / / पुवं व मुक्खअरया-सेसमवि तं तु निअनिआउ विणा 322 अपराण्हे सिद्धिगताः, संभवपद्माभसुविधिवासुपूज्याः॥ शेषा ऋषभादिकाः, श्रेयांसान्तास्तु पूर्वाण्हे // 321 // धर्माऽरनमिवीरा-अपररात्रे पूर्वरात्रे शेषाः / / पूर्ववन्मोक्षारकाः, शेषमपि तत्तु निजनिजाऽऽयुर्विना // 322 // साहूणसिद्धिगमणं, असंख१अड 2 चउ४ति ३संखपुरिसं५जा // संजायमुसह 1 नेमी 2, पासं३ तिम 4 सेस 5 मुक्खाओ 323 साधूनां सिद्धिगमन-मसंङ्ख्याऽष्टचतुस्त्रिसंख्यपुरुषं यावत् / संजातमृषभनेमि-पार्शन्तिमशेषमोक्षेभ्यः // 323 // तेसि चिय नाणाओ, मुणीण गयकम्मयाण सिद्धिगमो // अंतमुहुत्ते दु ति चउ-वरिसेसुं इगदिणाईसु // 324 // तेषां चैव ज्ञानान-मुनीनां गतकर्मकाणां सिद्धिगमः // अंतर्मुहूर्ते द्वित्रिचतु-वर्षेष्वेकदिनादिषु // 324 //
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