Book Title: Saptatishatsthanprakaranam
Author(s): Somtilaksuri, Ruddhisagarsuri
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
View full book text
________________ (60) 17, तिसयरि१८ गुणतीस 19 वीससया 20 // 262 // पन्ना 21 पनरसि 22 गारस 23, सत्तसयाई 4 विउविलद्धिमुणी // सव्वेअडहिय दुसया, पणयाल सहस्स दो लक्खा 263 - विंशतिसहस्राः षट्शतानि, विंशतिश्चतुःशतमेकोनविंशत्यष्टशतानि / एकोनविंशत्यष्टादश चतुःशतं,षोडशाष्टशतंपञ्चदशत्रिशतानि // 261 // चतुर्दश त्रयोदशद्वादशै-कादशदशनवाष्टसप्तसहस्राः। पष्टिरेकपञ्चाशच्छतानि, त्रिसप्तत्येकोनविंशद्विंशतिशतानि 262 पञ्चाशत् पञ्चदशैकादश, सप्तशतानि वैक्रियलब्धिमुनयः / सर्वे ऽष्टाधिक द्विशते, पञ्चचत्वारिंशत्सहस्राणि द्वेलक्षे // 263 // वाइमुणिवारसहसा, सड्छसया य 1 बार चउरसया 2 / बारसि 3 गारस 4 तह दस, चउसय सड्ढा छसड्डा वा 5 // 264 // सय छन्नवई 6 चुलसी, 7 छसयरि 8 सट्ठी 9 डवन्न 10 पन्नासं 11 / सगचत्त दुचत्तावा, 12 छत्तीस 13 दुतीस 14 अडवीसं 15 // 265 // चउवीस 16 वीस 17 सोलस 18, चउदस 19 बारस 20 दस 21 1 22 छ 23 चउरो 24 / सर्वकम्मि उ लक्खो, छवीस सहसा य दुनि सया // 266 // ___ वादिमुनयोद्वादशसहस्राः, सार्द्धषट्शतानिद्वादशचतुः शतानि // द्वादशैकादश तथा दश, सार्द्धचतुःशतानि सार्द्धषट्शतानि वा।२६४। शतानि षण्णवतिश्चतुरशीतिः, षट्सप्ततिः षष्टिरष्टपञ्चाशत् पञ्चाशत् / सप्तचत्वारिंशद् द्विचत्वारिंशद् वा, षदत्रिंशद्वात्रिंशदष्टाविं
Page Navigation
1 ... 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366