Book Title: Saptatishatsthanprakaranam
Author(s): Somtilaksuri, Ruddhisagarsuri
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 319
________________ - मनोज्ञानिनो द्वादशसहस्राः, सार्द्धसप्तशतानि सार्द्धषट शतानि वा // ततो द्वादशसहस्राः, पञ्चशतंपञ्चशतंसार्द्धवा 250 द्वादशसहस्राणि सार्द्धशत-मेकादशसहस्राणि षट्शतानि पञ्चाशत् / दशसहस्राणि सार्द्धचतुः शतानि, ततो दशसहस्राणि च त्रिशतानि // 251 // सार्बेकनवतिशता-न्यशीतिः पञ्चसप्ततिः पश्चसप्ततिः। षष्टिः षष्टिः पञ्चपञ्चाशत् , पञ्चाशत्पञ्च चत्वारिंशत् चत्वारिंशत् // 252 // चत्वारिंशदधिकत्रयस्त्रिंशत्शता-न्येकपञ्चाशदधिकपञ्चविंशतिशतानि // सार्द्धसप्तदश शतानि पञ्चदश, द्वादशपश्वाशदधिका षष्टिा // 253 // दशसार्द्धसप्तपञ्च शतानि, सर्वेमनोज्ञानिन एकलक्षं च / पञ्चचत्वारिंशत्सहस्राः, पञ्चशतान्येकनवत्यधिकाः / / 254 // . अह ओहिनाणिनवई 1, चउनवई 2 छन्नवइ 3 अठाणवई 4 // एयाइँसयातिओ, इगार 5 दस 6 नव 7 अड 8 सहस्सा // 255 // चुलसी 9 बिसयरि 10 सट्ठी 11, चउपन्न 12 डयाल 13 तहयतेयाला 14 // छत्तीसं 15 तीससया 16, पणविस 17 छवीस 18 बावीसा 19 // 256 // अट्ठार 20 सोल 21 पनरस 22, चउदस 23 तेरससयाअवहिनाणी // लक्खो तितीससहसा, चत्तारिसयाइंसबके // 257 // ___अथावधिज्ञानिनोनवति-श्चतुर्णवतिः षण्णवतिरष्टनवतिः / एतानि शतानि तत-एकादश दशनवाष्टसहस्राणि // 255 // चतुरशीति द्विसप्ततिः षष्टिः, चतुः पञ्चाशदष्टचत्वारिंशत् त्रिच

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