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२५) | साईं बाबा भी कह रहे हैं : " कुत्ते और शूद्र - सबमें - परमात्माका वास है। भगवान् घट-घट में परिव्याप्त हैं । उन्हें जानो" ( पृ० १०३ ) । सबसे पहला सत्य यह है कि यह जगत् विष्णुमय है । लेकिन जब एक चोर चोरीके अपकृत्यके स्वार्थपूर्ण बचाव के लिए उस सत्यका यूँ दुरुपयोग करता हैं कि 'मैने तो भगवान्की प्रेरणासे ही, उसकी इच्छासे ही, चोरीकी है, ' तो उसे न्यायाधीश “उमी भगवान् की प्रेरणासे" सज़ा देता है ( पृ०१३७) । इससे स्पष्ट है कि यह सर्वव्यापी विष्णुतत्त्व निःस्वार्थता, समता, मैत्री और प्रेमके पक्ष में है । स्वार्थ, अहंकार, द्वेष, संकुचितता, चालाकी या ढोंगकी परछाई भी उसे सहन नहीं होती ।
हाजी मुहम्मद तो एक बड़े साधु थे। लेकिन एक बार उन्होंने किसी नवागन्तुक धर्म - जिज्ञासुको दिखलानेके लिए ज्यादा देर तक नमाज़ पढ़ी | इस दिखलावेसे उनकी साठ वर्षोकी नमाज़का फल नष्ट हो गया ( पृ०११३ ) । परम सत्यको प्रदर्शनप्रियता लवलेश प्रिय नहीं है । पानीपर चलनेकी सिद्धि चमत्कारपूर्ण हो सकती है, परन्तु उसके लिए किया गया तप, परमात्माके लिए न होनेके कारण, भ्रामक बनकर रह जाता है ( पृ० ११७) । छह खण्ड फ़तह करके भरत चक्रवर्ती अपना नाम वृषभाचल पर्वत पर सगर्व लिखने जाता है, लेकिन वहाँ इतने चक्रवर्तियो के नाम लिखे हुए देखता है कि अपने नामके तीन अक्षर लिखनेकी भी जगह नहीं पाता । इससे उसका सारा गर्व खण्डित हो जाता है ( पृ० १२८ ) । चक्रवर्तियों के भी अभिमानके साथ सत्यकी ताल नहीं मिलती । मानकी तरह ही क्रोधको भी जीते बगैर भजनका अधिकार नहीं मिलता ( पृ०७१ ) i उसके लिए तो सदा सावधान रहना चाहिए। तभी 'समर्थ' बना जा सकता है ( पृ० ८४ ) । रामके भक्त के लिए सीता के राम-विहीन रत्नजटित हारकी भी क्या क़ीमत है ? ( पृ० ४३ ) । वैराग्यभाव ही परिवर्तक रसायन है : - जम्बुकुमारको भरी जवानीमें अतुल सम्पत्ति और अनुपम सुन्दरी आठ