Book Title: Sanskrit Sopanam Part 02
Author(s): Surendra Gambhir
Publisher: Pitambar Publishing Company

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Page 7
________________ सुभाषितानि संस्कृत का साहित्य सरस और विचारोत्तेजक श्लोकों का भण्डार है। चार श्लोक छात्रों ने गत वर्ष याद किये थे। इस वर्ष के लिए पाँच और श्लोक नीचे दिये जाते हैं। छात्र मिलकर इनका पाठ करें और इन्हें कण्ठस्थ करें। Sanskrit literature is the storehouse of lyrical and thoughtprovoking verses. Students learned four verses last year. For the current year, there are five more verses given below. Students should recite them together and learn them by heart. त्वमेव माता च पिता त्वमेव, स त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव-देव ॥१॥ शिमा उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रंश्चैव दक्षिणम् । वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ॥२॥ अपूर्वः कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव भारति । व्ययतो वृद्धिमायाति क्षयमायाति सञ्चयात् ॥३॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्म-संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे ॥ ४ ॥ मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत् । आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पण्डितः ॥ ५॥

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