Book Title: Sangit Ratnakar Part 04 Kalanidhi Sudhakara
Author(s): Sarangdev, Kalinatha, Simhabhupala
Publisher: Adyar Library

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Page 534
________________ ४९२ क्रमेणानन्तरं वामं क्रियमाणे मर्दलादेः क्रियाविशेषः क्रियते क्रियाविष्ट: करोऽन्वर्थ क्रीडाकरणभावेन क्ष क्षणं भूत्वा प्रचलितौ क्षामं खलं तथा पूर्ण क्षामं स्यानमनाज्जृम्भा क्षामत्ववत ज्ञेय क्षिप्तै हंसपक्षं च क्षीरोदकं दुकूलादि क्षुद्रे पूर्व मधस्तिर्यक् क्षेत्रेऽत्र केचिदिच्छन्ति खटकाख्यश्च तद्दिकः खटकाख्यस्तदन्वर्थे 相 खटकामुखमन्यं वा खटकामुखयो: पाण्योः खटकामुखद्दस्तौ चेत् खटकास्योपरो वक्ष • खड्गादिश्रामणे चास्य खण्डनं तुमुहुर्द • खण्डसूचि ततो बाह्यं वेदे च संकुचरित्र चित् ་ संगीतरत्नाकरः पुटसंख्या ३५२ गगने सागरादौ च ३८९ गङ्गावतरणं गङ्गा १८३ गजदन्तश्वावहित्य: २२४ गजरानन्तरं नास्ति ४५१ ६८ १२६ 33 १५९ १९९ गतागतं च वलितं ३६९ गतावान्दोलितोऽन्वर्थः गतिभङ्गः स्मृतेर्नाश: ३५ २२५ २२७ २०६ ६२ ५५ ७७ २०८, २२७ १०१ ܚܪ गजरोपशमस्यान्ते गजरोपशमेनैव गजविक्रीडितं गण्ड● गजानां तुरगाणां च गजारोहे तु विवृतं गण्डादि क्षेत्रसंस्थस्तु गण्डौ विकसितौ फुल्छौ ३१९ ५३ गतिस्थितिप्रयोगाणां गत्युन्मुखी च यत्रैकं गद्गदं वचनं स्वेद० गम्भीरभाव: कुशल: गर्वगाम्भीर्यमौ स्यात् गर्वादगणनेनापि गर्वेण स्वाङ्गवीक्षायां गात्रमुत्तचारीक गात्रविक्षेपमात्रं तु गावाने स्य गाव स्पर्शोल्लुकु गात्रोत्कम्पी चमत्कारः गात्रोद्धूननमाहादात् गायने में कोपेतैः ३१० गीतं चेति समाचष्ट पुटसंख्या ५४ २३९ २६ ३७५ १२४ ३७८ १९३ ૪૬૨ १३४ ४६ १५९ ३१९ १०४ ४४९ १९३ ३२८ ४३६ ३९४ ३२६ ४५८ १९ २३५ १२ ४५० ४७० ૪૬૪ ४३७ ३८० ३८५ गगने चेतदा चारी Scanned by Gitarth Ganga Research Institute

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