Book Title: Sangit Ratnakar Part 04 Kalanidhi Sudhakara
Author(s): Sarangdev, Kalinatha, Simhabhupala
Publisher: Adyar Library

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Page 564
________________ ५२२ विलीनो मूच्छिते शैला० विलोकनाल से तारे विवर्णशिथिलाङ्गत्वं विवर्तनं समुद्धतं विवर्तना त्रिकस्य स्यात् विवर्तितं च गरुड० विवर्तितं चापसृतं विवर्तितः कम्पितच विवर्तित मधोव विवर्तितौ च स्फुरितौ विवर्तितौ पद्मकोश विवर्तितौ समुतौ विवाह स्थाननयने विवाहे त्वाप्रस्थ विवृणोति मनोवृत्तिः विवृतं सममित्यूचे विश्वतं विनिवृतं च विवृत्ता सा कटी प्रोका विवृत्तोऽथ भ्रमरिका विवेकः श्रुतिसंपत्ति: विशाखदेवतं तच्च विशालनेत्रता बिम्ब० विशेद्विकृतवाग्वेष विशेषणविशेष्ये च विशेषणे चोल्वणयोः संगीतरत्नाकरः विश्लिष्टजयोः कृत्वा विश्विष्टा कातरा पाणि ० विश्लिष्टौष्ठं तु वि विश्विय पार्श्व स्वनीतः पुटसंख्या १६५ विश्वासैर्जुभिम्भितैर्मन्देः विषण्णादिष्वपि प्राय: १४६ विषण्णे व्याकुळे भीते विषमं च प्रहरण० ४४६ १५५ ९८ २६९ ८९ विषयेऽरुचिता दृष्टया • विषादविस्मयगत • विष्कम्भापसृतो मत्तः विष्णुभक्तिप्रभावाद्या १६६ ३३९ १५३ विषमं विकटं लध्वि • विषयाभिमुखान्यष्टौ ७८ विष्णुमन्मथ की नाश • विष्णुवेषधरेणैव विसृष्टः स्याद्विनिष्क्रान्तः १५४ ५६ ३८ विस्तरत्रस्तचित्तेन १८० विस्तारणं निर्निमेषं १३३ विस्तारिताञ्चितावङ्घ्री १९२ ९१ २२८ ४५१ ३२३ ३६७ ३८९ विस्तीर्णा चञ्चलोत्फुल्ल • विस्मयाय निर्वेद: विस्मये च स्मिते हर्ष ० विस्मये दृश्यते तच विस्मये भूरिसौभाग्य • विस्मयो वीक्षणं पश्चात् विस्मापनेऽभिनेतव्ये ३१ विहाय त्रीनभिनयान् विहाय विषयन्मुख्यं वीक्षणे गरुडादीनां वीरः स्यादुचिते युद्धे पुटसंख्या ४५० ८६ ८५ वीररौद्रकृतं मल्ल • वीरे क्रोधो भयं शोके ३९० १४ १५६ ४१५ ४६२ २५६ ४३८ ४०४ ३२१ १६७ ૪૪ ४३६ ३३६ १४८ ४०१ २१ २४ ३२७ ४६३ " २९५ २०० १७७ २८३ Scanned by Gitarth Ganga Research Institute १३६ १४ ४४१ ३१३ ४३१ ३२४ xx

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