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कल्याणमस्तु । श्रीधनराजोपाध्यायमित्रैः प्रसादीकृता प्रतिरियं वा० जयसुन्दरगणेः । शुभं भवतु लेखकपाठकयोः । कल्याणमस्तु श्रीः ।
आभार
सर्वप्रथम हम परमपूज्य गुरुवर्य उपाध्याय-पद विभूषित १००८ सुखसागरजी महाराज सा. के प्रति हम अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं, जिनके सतत श्रम से यह संस्करण तैयार हो सका। इस में प्रयुक्त प्रतियों के प्रेषण में जिन महानुभावों (नाम ऊपर प्रासंगिक रूप से आ चुके हैं) सहायता कर हमारा कार्य सरल किया, उनको, व पूज्य गुरुदेव के सदुपदेश से जिन जिन श्रावकोंने, ज्ञानवृद्ध्यर्थ आर्थिक मदद की, उन सब को धन्यवाद देना आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य कर्त्तव्य समझते हैं । श्री जिनवल्लभसूरिजी महाराजा का जो चित्र (काष्ठपट्टिका) प्रकाशित किया जा रहा है, उसका ब्लोक बीकानेर से भंवरलालजी नाहटा द्वारा प्राप्त हुआ था। तदर्थ वे भी धन्यवाद के पात्र है। ___ इस के शोधन में दृष्टिदोष से या तथाकथित कारण से यदि स्खलना रह गई हों तो पाठक सहानुभूतिपूर्वक सुझाने का कष्ट करेंगे। सिवनी, (सी० पी०)
शुभाकांक्षी, श्रा० शु० ७, सं० २००९
मुनि मंगलसागर
(આ નિવેદન લેખ શ્રીજિનદત્તસૂરિજ્ઞાનભંડાર, સુરત, દ્વારા પ્રકાશિત
"संध " पुस्तमाथी सामा२ ३९ ४३८ छे.)
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