________________ विक्रम चरित्र 22 Ematrimm * हंस की उक्ति प्रेत्युक्ति वाला काव्य बोला / जैसे "क्रिसी कूप में एक मेढ़क रहता था। उस कूप के तट पर एक नाजहंस कहीं से आकर बैठा / इसे देख कर मेढ़क ने पूछा कि "हे पक्षिन् ! तुम कहाँ से यहाँ आये हो ? हन-मैं मानसरोवर से आया हूँ ! मेढ़क-वह सरोवर कैसा है ? हैस-बहुत विशाल है ! मेडक-क्या वह सरोवर मेरे इस कूप से भी बड़ा है ? , हंस-क्या पूछते हो ? इस कूप से तो वह सरोवर बहुत ही बड़ा है। मेढक-रे पापी ! तू मठ मत बोल ! इस प्रकार कूप में रहने वाला वह मेढक तट पर स्थित राजहंस को धमकाने लगा ! तात्पर्य यही कि जो दूसरे देशों को नहीं देखता है वह अज्ञानी व्यक्ति थोड़े में ही बहुत गर्व करने लगता है। . उस काव्य * को सुनकर राजा अपने मन में विचार करने * रे पक्षीन्नागतस्त्वं कुत इह सरसस्तत् कियद् भो विशालम्। . कि मद्धाम्नोऽपि बाढं नहि, सुमहत् पाप !मा जल्प मिथ्या। इत्थं कूपोदरस्थः शपति तटगतं ददुरो राजहंसं, . . नीच स्वल्पेन गर्वी भवति हि विषया नापरे येन दृष्ठाः' ।३८|सर्ग.८ .. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust